रुपये की गिरावट: भारतीय अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव
रुपये की गिरती कीमत का असर
स्थिति और भी चिंताजनक है, क्योंकि रुपये की वैल्यू उन देशों की मुद्राओं की तुलना में कम हो गई है, जिनसे भारत व्यापार करता है। पिछले एक वर्ष में 40 विदेशी मुद्राओं के समूह के मुकाबले रुपया कमजोर हुआ है।
रुपया अब एक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 90 के मनोवैज्ञानिक स्तर को पार कर चुका है। मुद्रा की गिरावट के कारण देश में उत्पादित वस्तुएं सस्ती हो जाती हैं, जिससे श्रम और सामग्री की लागत में कमी आती है। इससे कुल मिलाकर संबंधित देश में जीवन स्तर प्रभावित होता है। भारत के लिए यह स्थिति इसलिए गंभीर है क्योंकि रुपये की वैल्यू उन देशों की मुद्राओं की तुलना में लगातार गिर रही है, जिनसे भारत का व्यापार होता है। पिछले एक साल में ऐसी 40 मुद्राओं के समूह में रुपये की कीमत में सबसे अधिक 15.4 प्रतिशत की गिरावट यूरो के मुकाबले आई है।
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले यह गिरावट 6.1 प्रतिशत रही है। अक्टूबर में भारतीय निर्यात में 41 बिलियन डॉलर से अधिक की रिकॉर्ड कमी के बाद यह गिरावट तेज हो गई। इससे स्पष्ट हुआ कि भारत को चालू और पूंजी खाता दोनों में विदेशी मुद्रा का नुकसान हो रहा है। इस वर्ष विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक शेयर बाजार से 17 बिलियन डॉलर से अधिक निकाल चुके हैं। हालांकि, ये तात्कालिक कारण हैं। असली समस्या दीर्घकालिक रुझान की है। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत की विनिमय दर प्रणाली को क्राउल-लाइक श्रेणी में डाल दिया है। पहले इसे फ्लोटिंग से स्थिरकृत श्रेणी में रखा गया था।
फ्लोटिंग श्रेणी में मुद्रा अपनी ताकत से मूल्य बनाए रखती है, जबकि स्थिरकृत श्रेणी में केंद्रीय बैंक हस्तक्षेप कर रुपये की एक निश्चित कीमत बनाए रखता है। जब केंद्रीय बैंक ऐसा करने की क्षमता खो देता है, तो आईएमएफ मुद्रा को क्राउल-लाइक श्रेणी में रखता है। कुल मिलाकर, मुद्रा का मूल्य अर्थव्यवस्था की मूलभूत ताकत का प्रतिबिंब है। अमेरिकी टैरिफ ने भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रति चिंताओं को बढ़ा दिया है, जिसके परिणामस्वरूप चालू और पूंजी खातों की स्थिति बिगड़ गई है। यह रुपये की कीमत में भी स्पष्ट है। भारत के लिए यह एक बेहद चुनौतीपूर्ण समय है।