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रूस ने तालिबान को दी पहली आधिकारिक मान्यता, बदल रहा है वैश्विक परिदृश्य

रूस ने तालिबान को पहली बार औपचारिक मान्यता देकर वैश्विक कूटनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव किया है। यह कदम अफगानिस्तान की कूटनीतिक स्थिति को बदलने के साथ-साथ रूस की विदेश नीति को भी पुनर्परिभाषित करता है। अफगान विदेश मंत्री ने इसे एक ऐतिहासिक क्षण बताया है, जबकि तालिबान ने लंबे समय से वैश्विक मान्यता की कोशिश की है। जानें इस घटनाक्रम के पीछे की रणनीति और इसके संभावित प्रभाव।
 

तालिबान को मिली पहली वैश्विक मान्यता

हाल ही में, रूस ने तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता देकर एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। यह पहली बार है जब किसी वैश्विक शक्ति ने तालिबान को मान्यता दी है, जो पिछले दो दशकों से अंतरराष्ट्रीय बहिष्कार और अस्थिर संबंधों का सामना कर रहा था। रूस के इस कदम ने 2021 में तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद से जमी हुई वैश्विक नीति में बदलाव का संकेत दिया है।


रूसी विदेश मंत्रालय ने पुष्टि की है कि उसने अफ़ग़ानिस्तान के राजदूत गुल हसन हसन के परिचय पत्रों को स्वीकार कर लिया है। यह घटना तालिबान के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है, क्योंकि यह किसी देश द्वारा दी गई पहली आधिकारिक मान्यता है। इसने न केवल अफ़ग़ानिस्तान की कूटनीतिक स्थिति को बदल दिया है, बल्कि रूस की विदेश नीति की दिशा को भी पुनर्परिभाषित किया है।


अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्ताकी ने इसे एक "ऐतिहासिक क़दम" बताया है और इसे अन्य देशों के लिए अनुकरणीय उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया है। तालिबान ने लंबे समय से वैश्विक मान्यता की कोशिश की है, लेकिन महिलाओं के अधिकारों के उल्लंघन और मानवाधिकारों के हनन के कारण इसे अब तक अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता नहीं मिल सकी थी।


2021 में अमेरिका और नाटो सेनाओं की वापसी के बाद तालिबान ने सत्ता संभाली। हालांकि, तालिबान ने महिलाओं की शिक्षा और सार्वजनिक जीवन में भागीदारी पर गंभीर प्रतिबंध लगा दिए, जिससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने उससे दूरी बना ली। फिर भी, तालिबान ने चीन, ईरान और यूएई जैसे देशों के साथ सीमित संपर्क बनाए रखा।


रूस का दृष्टिकोण भी बदल गया है। कुछ साल पहले तक, रूस तालिबान को आतंकवादी संगठन मानता था, लेकिन अप्रैल 2025 में उसने इस वर्गीकरण को समाप्त कर दिया था। अब मिली मान्यता उसी नीति परिवर्तन का परिणाम है।


रूस में अफ़ग़ान राजदूत दिमित्री झिरनोव ने बताया कि यह निर्णय राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव की सिफारिश पर लिया गया है। उन्होंने कहा कि यह अफ़ग़ानिस्तान के साथ पूर्ण और रचनात्मक संबंध स्थापित करने के प्रयास को दर्शाता है।


रूस के लिए यह मान्यता केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं है, बल्कि एक रणनीतिक कदम भी है। अफ़ग़ानिस्तान में स्थिरता और मध्य एशियाई देशों में कट्टरवाद की रोकथाम रूस की प्राथमिक चिंता है। तालिबान के साथ सीधा संवाद स्थापित कर, मास्को इस क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ाना चाहता है।