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रोहनात गांव: आज़ादी के बाद भी तिरंगा न फहराने की कहानी

रोहनात गांव की कहानी एक अद्भुत संघर्ष और बलिदान की दास्तान है। 1857 की क्रांति में इस गांव ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह किया, लेकिन आज़ादी के बाद भी तिरंगा नहीं फहराया गया। जानें इस गांव के इतिहास, महिलाओं के बलिदान और 2018 में तिरंगा फहराने के अवसर के बारे में। क्या गांववासियों की मांग पूरी होगी? जानने के लिए पढ़ें पूरा लेख।
 

रोहनात गांव का गौरव और दर्द

हरियाणा के भिवानी जिले में स्थित रोहनात गांव की कहानी न केवल गर्वित करने वाली है, बल्कि अत्यंत दुखद भी है। 1857 की स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, इस गांव ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह किया। स्थानीय निवासियों ने जेली, लाठी और गंडासियों के साथ ब्रिटिश सैनिकों का सामना किया। लेकिन अंग्रेजों ने गांव को तोपों से तबाह कर दिया और कई ग्रामीणों को रोड रोलर से कुचल दिया।


महिलाओं का बलिदान

गांव की महिलाओं ने अपनी इज्जत की रक्षा के लिए कुंए में कूदकर आत्महत्या कर ली। इस संघर्ष में वीर बिरड़ दास बैरागी को तोप पर बांधकर उड़ा दिया गया। यह दुखद घटना 29 मई 1857 को हुई, जिसे आज भी गांव के लोग याद करते हैं।


71 वर्षों तक तिरंगा नहीं फहराया गया

स्वतंत्रता के बाद, गांववासियों को उम्मीद थी कि उन्हें उनकी खोई हुई जमीन वापस मिलेगी। लेकिन अंग्रेजों द्वारा नीलाम की गई भूमि आज तक ग्रामीणों को नहीं मिली। इसी कारण, गांववालों ने 71 वर्षों तक तिरंगा नहीं फहराया।


2018 में तिरंगा फहराने का अवसर

23 मार्च 2018 को, तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने रोहनात गांव में पहली बार तिरंगा फहराया। इसके बाद, सरकार ने गांव में वेबसाइट, लाइब्रेरी, व्यायामशाला और गौरव पट्ट का निर्माण किया और जमीन वापस दिलाने का आश्वासन दिया।


गांववासियों की मांग

तब से हर साल गांव में तिरंगा फहराया जाता है, लेकिन गांववासियों की मांग है कि उन्हें उनकी जमीन वापस मिले और सरकार उनके बलिदान को उचित सम्मान दे।