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लद्दाख में हिंसा: प्रदर्शनकारियों ने बीजेपी कार्यालय को आग के हवाले किया

लद्दाख के लेह जिले में हाल ही में भड़की हिंसा ने सभी को चौंका दिया है। प्रदर्शनकारियों ने बीजेपी कार्यालय को आग के हवाले कर दिया, जिससे चार लोगों की मौत हो गई और 70 से अधिक लोग घायल हुए। यह हिंसा पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक के नेतृत्व में चल रहे आंदोलन से जुड़ी है, जिसमें लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने और अन्य मांगें शामिल हैं। गृह मंत्रालय ने इस पर गंभीर चिंता जताई है। जानें इस घटनाक्रम के पीछे की पूरी कहानी और राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप।
 

लद्दाख में अचानक भड़की हिंसा

Ladakh violence: लद्दाख का लेह जिला, जो अब तक शांति का प्रतीक माना जाता था, बुधवार को अचानक हिंसा का शिकार हो गया। युवा प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव किया, वाहनों को नुकसान पहुँचाया और बीजेपी कार्यालय में आग लगा दी। इस झड़प में चार लोगों की जान चली गई और 70 से अधिक लोग घायल हुए। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन ने लद्दाख और करगिल में BNSS की धारा 163 लागू कर दी है।


हिंसा की जड़ें

इस हिंसा का कारण उस आंदोलन से जुड़ा है, जिसका नेतृत्व पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक कर रहे हैं। उनकी चार प्रमुख मांगें हैं:


1. लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए।
2. संविधान की छठी अनुसूची में लद्दाख को शामिल किया जाए।
3. कारगिल और लेह के लिए अलग-अलग लोकसभा क्षेत्र बनाए जाएं।
4. सरकारी नौकरियों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दी जाए।


वांगचुक ने 10 सितंबर को भूख हड़ताल शुरू की थी, लेकिन 23 सितंबर को कुछ प्रदर्शनकारियों की तबीयत बिगड़ने के बाद स्थिति बिगड़ गई और 24 सितंबर को यह विरोध हिंसक हो गया।


गृह मंत्रालय की प्रतिक्रिया

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस हिंसा पर गहरी चिंता व्यक्त की है। मंत्रालय का कहना है कि लद्दाख की मांगों पर चर्चा पहले से ही उच्चाधिकार प्राप्त समिति (HPC) के एजेंडे में थी। सरकार ने अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण को 45% से बढ़ाकर 84% किया है, परिषदों में महिलाओं को एक-तिहाई आरक्षण दिया है और स्थानीय भाषाओं को मान्यता दी है।


मंत्रालय ने आरोप लगाया कि वांगचुक ने युवाओं को भड़काने के लिए 'अरब स्प्रिंग' और 'Gen-Z आंदोलन' जैसे उदाहरण दिए, जिससे भीड़ उत्तेजित हो गई। स्थिति नियंत्रण से बाहर होने पर पुलिस को आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी।


कैसे भड़की हिंसा?

बुधवार को हजारों प्रदर्शनकारी NDS मेमोरियल ग्राउंड, लेह में इकट्ठा हुए। तनाव बढ़ने पर बीजेपी कार्यालय और हिल काउंसिल पर पथराव शुरू हो गया। दफ्तर और आसपास की गाड़ियों में आग लगा दी गई। पुलिस बल स्थिति को नियंत्रित करने में असफल रहा और हालात बेकाबू हो गए। शाम तक स्थिति को काबू में लाया गया।


छठी अनुसूची की मांग का महत्व

भारत के संविधान की छठी अनुसूची उत्तर-पूर्वी राज्यों के आदिवासी क्षेत्रों को स्वशासन का अधिकार देती है। इसमें स्वायत्त जिला परिषदों का गठन किया जाता है, जिससे स्थानीय समुदायों को भूमि, जंगल, संस्कृति और प्रशासन से जुड़े कानून बनाने का अधिकार मिलता है। लद्दाख के समर्थकों का तर्क है कि यहां 97% जनसंख्या अनुसूचित जनजाति की है, इसलिए इस क्षेत्र को भी समान अधिकार मिलना चाहिए।


संघर्ष का नेतृत्व करने वाले संगठन

लद्दाख में दो प्रमुख संगठन इन मांगों का नेतृत्व कर रहे हैं: लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस। इनका गठन 2020 में हुआ और तब से ये संयुक्त रूप से आंदोलन चला रहे हैं। सरकार के साथ अगली वार्ता 6 अक्टूबर को निर्धारित थी, लेकिन इससे पहले ही यह हिंसा भड़क गई।


राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप

बीजेपी ने इस हिंसा के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है। पार्टी का दावा है कि इसमें शामिल कुछ लोग कांग्रेस से जुड़े हैं। हालांकि, कांग्रेस ने इस पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।