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वंदे मातरम के 150 वर्ष: पीएम मोदी ने की महत्वपूर्ण चर्चा, बंकिम बाबू पर तृणमूल सांसद ने उठाया सवाल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर लोकसभा में एक महत्वपूर्ण चर्चा की। उन्होंने इस गीत के ऐतिहासिक महत्व और स्वतंत्रता आंदोलन में इसके योगदान को याद किया। चर्चा के दौरान, बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय को 'बंकिम दा' कहने पर तृणमूल सांसद सौगत रॉय ने आपत्ति जताई, जिस पर पीएम मोदी ने विनम्रता से अपनी गलती सुधार ली। मोदी ने इस अवसर को गौरवगाथा को पुनः स्थापित करने का बताया और कहा कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए महत्वपूर्ण संदेश है।
 

प्रधानमंत्री मोदी का संबोधन


नई दिल्ली : वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में लोकसभा में सोमवार को एक महत्वपूर्ण चर्चा का आयोजन किया गया, जिसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की। उन्होंने इस ऐतिहासिक गीत के महत्व और स्वतंत्रता संग्राम में इसके योगदान को याद करते हुए कहा कि वंदे मातरम केवल एक गीत नहीं है, बल्कि यह उस युग का प्रेरणा स्रोत था जिसने भारतीयों को उपनिवेशवाद के खिलाफ एकजुट होने की शक्ति दी। प्रधानमंत्री ने इसे राष्ट्र के गौरव का क्षण बताते हुए कहा कि इस विषय पर सामूहिक रूप से विचार करना हर भारतीय के लिए गर्व की बात है।


बंकिम बाबू का संबोधन

“बंकिम बाबू” कहना अधिक उपयुक्त होगा
अपने भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने वंदे मातरम के रचनाकार बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय को “बंकिम दा” कहकर संबोधित किया। इस पर तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद सौगत रॉय ने तुरंत आपत्ति जताई और कहा कि इस महान साहित्यकार के लिए “बंकिम बाबू” कहना अधिक उचित होगा। प्रधानमंत्री ने रॉय की भावना का सम्मान करते हुए तुरंत अपनी गलती सुधार ली। इसके बाद उन्होंने मुस्कुराते हुए रॉय से पूछा कि “क्या मैं आपको दादा कह सकता हूँ? या इसमें भी आपत्ति होगी?” इस पर सदन में ठहाकों की गूंज सुनाई दी और माहौल हल्का हो गया।


वंदे मातरम की गौरवगाथा

गौरवगाथा को दोबारा स्थापित करने का अवसर
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में कहा कि वंदे मातरम की 150 वर्षों की यात्रा कई चुनौतीपूर्ण पड़ावों से गुजरी है। उन्होंने बताया कि जब इसके 50 वर्ष पूरे हुए, तब देश औपनिवेशिक शासन की बेड़ियों में बंधा था। बाद में जब 100 वर्ष पूरे हुए, तब भारत आपातकाल की कठिन परिस्थितियों में था, जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाया गया और देशभक्तों को जेलों में डाल दिया गया। प्रधानमंत्री ने इसे इतिहास का एक काला दौर बताया और कहा कि आज 150 वर्ष पूरे होने पर वंदे मातरम की गौरवगाथा को पुनः स्थापित करने का अवसर मिला है।


भविष्य की पीढ़ियों के लिए संदेश

आने वाली पीढ़ियों के लिए संदेश
प्रधानमंत्री ने कहा कि इस विशेष चर्चा से न केवल सदन की प्रतिबद्धता प्रकट होती है, बल्कि यह भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी महत्वपूर्ण सीख बन सकती है। उनके अनुसार, वंदे मातरम उस ऊर्जा, त्याग और संकल्प का प्रतीक है जिसने 1947 में भारत को स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज जब देश अमृतकाल में प्रवेश कर चुका है, तब इस गीत की प्रेरणा राष्ट्र को आगे बढ़ाने की शक्ति देती है।