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विश्व ओजोन दिवस 2025: ओजोन परत की सुरक्षा की आवश्यकता

विश्व ओजोन दिवस 2025 के अवसर पर, अंटार्कटिका का ओज़ोन होल 20 मिलियन वर्ग किलोमीटर तक फैल चुका है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ओज़ोन परत की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। ओज़ोन होल के इतिहास, इसके कारण और इसके खतरनाक प्रभावों पर चर्चा की गई है। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के महत्व को भी उजागर किया गया है, जो वैश्विक पर्यावरण संरक्षण में एक महत्वपूर्ण कदम है। जानें कि भविष्य में ओज़ोन परत को कैसे बहाल किया जा सकता है।
 

विश्व ओजोन दिवस 2025

विश्व ओजोन दिवस 2025: यह दिन ऐसे समय पर मनाया जा रहा है जब अंटार्कटिका का ओज़ोन होल चिंताजनक रूप से 20 मिलियन वर्ग किलोमीटर तक फैल चुका है। नासा की ओज़ोन वॉच रिपोर्ट के अनुसार, यह आकार औसत से बड़ा है, लेकिन इसे इस दशक के सामान्य स्तर में रखा जा सकता है। वैज्ञानिकों ने बार-बार चेतावनी दी है कि यदि ओज़ोन परत की सुरक्षा के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो इसका प्रभाव न केवल मानव जीवन पर, बल्कि संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ेगा।


ओज़ोन होल का इतिहास

ओज़ोन होल का इतिहास भी काफी दिलचस्प है। 1912 में अंटार्कटिका के असामान्य मौसम का अध्ययन करते समय वैज्ञानिकों ने इसके संकेत पाए, और 1985 में इसे आधिकारिक रूप से पहचाना गया। इसके बाद के शोधों ने यह स्पष्ट किया कि सीएफसी और एचसीएफसी जैसी गैसें ओज़ोन को नुकसान पहुंचा रही हैं। इसी कारण 1987 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल लागू किया गया, जिसे वैश्विक पर्यावरण संरक्षण की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जाता है।


ओजोन होल का कारण

ओजोन होल क्यों होता है?

जब सीएफ़सी और एचएफ़सी जैसी गैसें वायुमंडल में पहुंचकर पराबैंगनी विकिरण के संपर्क में आती हैं, तो ये ओज़ोन अणुओं को तोड़ देती हैं। इसके परिणामस्वरूप, ओज़ोन परत कमजोर हो जाती है और सूर्य की हानिकारक किरणें सीधे पृथ्वी पर पहुंचने लगती हैं। यही स्थिति 'ओजोन छिद्र' कहलाती है।


ओजोन होल के प्रभाव

खतरनाक असर

इन विकिरणों के कारण मानवों में त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद और रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी जैसी गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। समुद्री जीवन पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। उदाहरण के लिए, आर्कटिक में फाइटोप्लैंक्टन समुद्र की सतह से गहराई में जाने लगे हैं, जिससे खाद्य श्रृंखला और जैव विविधता प्रभावित हो रही है।


बदलती स्थिति

बदलती स्थिति और चुनौतियां

2020 में ओज़ोन होल बहुत बड़ा और गहरा था, जबकि 2024 में यह छोटा पाया गया। लेकिन 2025 में यह फिर से बढ़ गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार, इसके पीछे ध्रुवीय समताप मंडलीय बादल, ज्वालामुखी विस्फोट और जीवाश्म ईंधन का धुआं जैसे कारण हैं।


मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का महत्व

मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल: एक ऐतिहासिक कदम

मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पहला ऐसा वैश्विक समझौता है जिसे सभी देशों ने स्वीकार किया है। इसने यह साबित किया है कि सामूहिक प्रयासों से बड़े पर्यावरणीय संकटों का समाधान संभव है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह प्रोटोकॉल लागू नहीं होता, तो आर्कटिक का तापमान आज 12 डिग्री तक बढ़ चुका होता।


भविष्य की संभावनाएं

संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि ओज़ोन परत अंटार्कटिका में 2066 तक, आर्कटिक में 2045 तक और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में 2040 तक पूरी तरह से बहाल हो सकती है। हालांकि, जीवाश्म ईंधन और अन्य ओज़ोन-नाशक रसायनों का उपयोग अभी भी चिंता का विषय बना हुआ है।