शारदीय नवरात्र: जौ बोने की परंपरा और इसका महत्व
जानें शारदीय नवरात्र के पहले दिन जौ बोने का महत्व
Shardiya Navratri, नई दिल्ली: आज से शारदीय नवरात्र का पर्व आरंभ हो रहा है। यह पर्व 9 दिनों तक चलता है, जिसमें देवी मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दौरान मां दुर्गा की विधिपूर्वक पूजा करने से भक्तों को इच्छित फल प्राप्त होता है।
इसके साथ ही, यह समय जीवन में दुखों के समाप्त होने का भी प्रतीक है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नवरात्र में माता की पूजा से घर में सकारात्मक ऊर्जा, धन और खुशहाली बनी रहती है। नवरात्र की शुरुआत घटस्थापना और जौ बोने की परंपरा से होती है, जिसे कलश स्थापना भी कहा जाता है। इस परंपरा के पीछे गहरी आध्यात्मिक और पौराणिक मान्यताएं हैं।
जौ बोने का महत्व
जौ को हमेशा से अनाज का शुभ और पहला रूप माना गया है। यह केवल खाद्य सामग्री नहीं, बल्कि समृद्धि, जीवनशक्ति और उर्वरता का प्रतीक भी है। नवरात्र के पहले दिन जौ बोने की परंपरा इस बात का प्रतीक है कि आने वाला वर्ष सुख, शांति, समृद्धि और आर्थिक स्थिरता से भरा रहे।
यदि जौ स्वस्थ और तेजी से अंकुरित होते हैं, तो इसे पूरे वर्ष के लिए शुभ संकेत माना जाता है, जो परिवार में सफलता और सकारात्मक ऊर्जा लाता है। वहीं, यदि इनके विकास में कोई रुकावट आती है, तो इसे भविष्य में आने वाली चुनौतियों का संकेत माना जाता है। आध्यात्मिक दृष्टि से भी जौ का अंकुरित होना देवी दुर्गा की कृपा का प्रतीक है।
जौ बोने की विधि
- नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना के साथ मिट्टी के पात्र में स्वच्छ मिट्टी भरी जाती है।
- इस पात्र में जौ बोए जाते हैं और इसे माता के समक्ष रखा जाता है।
- नौ दिनों तक नियमित रूप से जल अर्पित किया जाता है।
- जौ का अंकुरित होना जीवन में ऊर्जा, प्रगति और शुभ फल का प्रतीक माना जाता है।
- जितनी तेजी और मजबूती से जौ अंकुरित होते हैं, उतना ही परिवार के लिए शुभ और लाभकारी समझा जाता है।
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