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शिवपुरी: केपी शर्मा ओली का सुरक्षित ठिकाना और इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

नेपाल में चल रहे राजनीतिक संकट के बीच, पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने शिवपुरी को अपना सुरक्षित ठिकाना चुना है। यह क्षेत्र काठमांडू के उत्तर में स्थित है और इसकी सुरक्षा व्यवस्था इसे राजनीतिक हस्तियों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल बनाती है। जानें कि कैसे शिवपुरी ने इतिहास में कई महत्वपूर्ण नेताओं को शरण दी है और क्यों यह स्थान आज भी महत्वपूर्ण है।
 

शिवपुरी क्यों बना केपी शर्मा ओली का सुरक्षित ठिकाना?

शिवपुरी का महत्व: नेपाल में हालात बेहद नाजुक हैं, जहां अंतरिम सरकार का गठन हो रहा है। सीमाएं बंद हैं और सड़कों पर हिंसा के स्पष्ट संकेत देखे जा रहे हैं। जनरल जेड और सेना के बीच बातचीत में पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की का नाम अंतरिम सरकार के नेता के रूप में सामने आया है। इस बीच, पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने सोशल मीडिया पर एक भावुक संदेश साझा किया।


उनके अनुसार, वह इस समय शिवपुरी में सुरक्षित हैं और सेना की सुरक्षा में हैं। अब सवाल उठता है कि ओली ने हिंसा के बीच शिवपुरी को अपना ठिकाना क्यों चुना, और यह स्थान विद्रोह के बीच कैसे सुरक्षित है?


शिवपुरी की सुरक्षा व्यवस्था

हाल ही में नेपाल सरकार ने सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाया, जिसके बाद युवा सड़कों पर उतर आए और इसका विरोध किया। यह विरोध तेजी से बढ़ा, जिसके चलते ओली को अपने पद से इस्तीफा देकर सेना की शरण लेनी पड़ी। वह काठमांडू के निकट शिवपुरी में नेपाली सेना की सुरक्षा में हैं।


शिवपुरी का भौगोलिक महत्व

शिवपुरी नेपाल का एक सुरक्षित और खूबसूरत क्षेत्र है, जो काठमांडू के उत्तर में स्थित है। यह पूरी तरह पहाड़ी इलाका है, जहां लंबे समय से सेना के शिविर और प्रशिक्षण केंद्र मौजूद हैं। यहां आम जनता का आना-जाना सीमित है, जिससे सुरक्षा बढ़ जाती है।


राजनीतिक हस्तियों का आश्रय स्थल

शिवपुरी में नेपाली सेना का बैरक है और यहां कई उच्च सुरक्षा सैन्य परिसर भी हैं। ये परिसर राजनीतिक हस्तियों के लिए सुरक्षित ठिकाने के रूप में कार्य करते हैं।


ऐतिहासिक संदर्भ

2005 में राजा ज्ञानेन्द्र के तख्तापलट के समय, सेना ने विपक्षी नेता गिरिजा प्रसाद कोइराला को शिवपुरी में शरण दी थी। इसके अलावा, 2006 में जना आंदोलन के दौरान पूर्व पीएम शेर बहादुर देउबा और अन्य नेताओं को भी यहां रखा गया था। 2015 में भूकंप के बाद, नेपाल सरकार के कुछ मंत्रियों को भी यहां ठहराया गया था।