शॉर्ट वीडियो का बच्चों पर प्रभाव: क्या यह उनके विकास को नुकसान पहुंचा रहा है?
शॉर्ट वीडियो का बढ़ता क्रेज
शॉर्ट वीडियो का चलन तेजी से बढ़ रहा है, खासकर बच्चों के बीच। कई माता-पिता का मानना है कि जब बच्चे थोड़ी देर के लिए मोबाइल पर शॉर्ट वीडियोज देखते हैं, तो इसमें कोई समस्या नहीं है। लेकिन सच्चाई यह है कि 15 सेकंड का एक छोटा वीडियो बच्चों के मानसिक विकास को 2 घंटे की फिल्म से कहीं अधिक नुकसान पहुंचा सकता है। आइए जानते हैं कि क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. सुमित ग्रोवर के अनुसार यह बच्चों के विकास के लिए क्यों एक गंभीर चुनौती बन गया है।
बच्चों का ध्यान भटकाना
बच्चों का दिमाग हो रहा है हाईजैक
छोटे वीडियो इस तरह से बनाए जाते हैं कि वे जल्दी से बच्चों का ध्यान आकर्षित कर सकें। इनमें तेज़ी से बदलते दृश्य और तेज़ आवाज़ें होती हैं, जो बच्चों के दिमाग पर हावी हो सकती हैं। बच्चे अभी विकास के चरण में हैं, जहां वे ध्यान केंद्रित करना और आत्म-नियंत्रण सीख रहे हैं। ऐसे में, इस प्रकार की उत्तेजना उनके दिमाग को 'बिना मेहनत के तुरंत इनाम' पाने की आदत डाल देती है।
स्क्रॉलिंग का प्रभाव
स्क्रॉलिंग है असली दुश्मन
- 15 सेकंड का वीडियो केवल ध्यान भटकाता है, जबकि 2 घंटे की फिल्म एक संपूर्ण कहानी प्रस्तुत करती है।
- फिल्में बच्चों को धैर्य और लंबे समय तक ध्यान केंद्रित करने की कला सिखाती हैं।
- बच्चे किरदारों को समझते हैं और उनकी भावनाओं को महसूस करते हैं।
- फिल्म देखने के दौरान बच्चे एक कहानी से जुड़े रहते हैं, जो उनके भावनात्मक विकास में सहायक होती है।
शिक्षा और बातचीत पर प्रभाव
पढ़ाई और बातचीत लगने लगती है 'बोरिंग'
शॉर्ट वीडियो की लत बच्चों के वास्तविक जीवन के कार्यों को प्रभावित कर रही है। जब बच्चे त्वरित मनोरंजन के आदी हो जाते हैं, तो उन्हें पढ़ाई, होमवर्क या सामान्य बातचीत भी उबाऊ लगने लगती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उन्हें अन्य कार्यों में शॉर्ट वीडियो जैसा मज़ा नहीं मिलता।
ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई
फोकस और क्रिएटिविटी पर खतरा
छोटे वीडियो देखने से बच्चों का ध्यान केंद्रित करने की क्षमता कम हो सकती है और वे अधिक चिड़चिड़े हो सकते हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि बच्चे बोरियत को सहन करना भूल जाते हैं। जबकि बोरियत वह समय है जब दिमाग सीखने और रचनात्मकता की ओर बढ़ता है। असली खतरा वीडियो की लंबाई नहीं, बल्कि इन तेज़ और शोर वाले क्लिप्स का लगातार दोहराया जाना है, जो बच्चों के ध्यान, सीखने की क्षमता और भावनात्मक विकास में बाधा डाल सकता है।