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श्रावण अमावस्या: बैलों की पूजा और पिठोरी व्रत का महत्व

श्रावण अमावस्या, जो 21 अगस्त को मनाई जाएगी, हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण है। इस दिन बैलों की पूजा की जाती है और माताएँ अपने बच्चों को वरदान देती हैं। पिठोरी व्रत के दौरान बैलों को आराम दिया जाता है और उनकी विशेष पूजा की जाती है। जानें इस पर्व की परंपराएँ और मान्यताएँ, जो भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं।
 

श्रावण अमावस्या का महत्व

श्रावण अमावस्या, जो शुक्रवार, 21 अगस्त को सुबह 11:55 बजे से शुरू होकर शनिवार को सुबह 11:35 बजे तक रहेगी, हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखती है। इसे शनि अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन बैलों की पूजा की जाती है, जिसे पिठोरी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन माताएँ अपने बच्चों को वरदान देती हैं।


पिठोरी व्रत का आयोजन संतान की दीर्घायु के लिए किया जाता है। इस दिन, शाम को स्नान के बाद आठ कलश स्थापित किए जाते हैं, जिनकी पूजा ब्राह्मी, माहेश्वरी और अन्य शक्तियों के साथ की जाती है। चावल के चिन्ह पर चौसठ योगिनियों का आह्वान किया जाता है और आटे की मूर्तियाँ बनाई जाती हैं।


पिठोरी अमावस्या पर नैवेद्य में वलाच बिराद, मठ्ठा भाजी, चावल की खीर, पूड़ी, सातोड़ी और बड़े शामिल होते हैं। इस विधि से व्रत पूरा करने से अखंड सौभाग्य और दीर्घायु पुत्र की प्राप्ति का विश्वास है।


पोला पर्व का महत्व

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहाँ किसान अपने बैलों को अपना साथी मानते हैं। पोला पर्व के दौरान, किसान अपने बैलों को आराम देते हैं और उनकी पूजा करते हैं। इस दिन बैलों से कोई काम नहीं लिया जाता।


किसान बैलों को नदी पर ले जाकर उन्हें साफ करते हैं और रंग-बिरंगे कपड़े पहनाते हैं। इसके बाद, बैलों की पूजा की जाती है। इस दिन बैलों के लिए विशेष भोजनों का प्रबंध किया जाता है, जैसे बाजरा-चना, कदंब, चारा, और हरी घास।


पोला पर्व पर बैलों की दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन भी होता है, जिसमें बैल ऊँची छलांग लगाकर तोरण तोड़ते हैं। यह पर्व हिंदू संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हमारे काम आने वाले जीवों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है।