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संविधान से 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्द हटाने पर विवाद गहराया

संविधान की प्रस्तावना से 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्द हटाने की आरएसएस की मांग ने राजनीतिक विवाद को जन्म दिया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है, जबकि भाजपा के शिवराज सिंह चौहान ने समर्थन किया है। इस मुद्दे पर दोनों पक्षों के बीच तीखी बहस चल रही है, जिसमें संविधान की मूल भावना और आपातकाल के समय के घटनाक्रमों पर चर्चा हो रही है। क्या यह विवाद भारतीय राजनीति में नई दिशा देगा? जानें पूरी कहानी में।
 

संविधान में बदलाव की मांग पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ

नई दिल्ली। आरएसएस द्वारा संविधान की प्रस्तावना से 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्दों को हटाने की मांग ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मोर्चा संभाला है, जबकि भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसका समर्थन किया है। आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी दत्तात्रेय होसबाले के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए राहुल गांधी ने कहा कि आरएसएस और भाजपा को संविधान की नहीं, बल्कि मनुस्मृति की आवश्यकता है।


राहुल गांधी ने आरएसएस पर आरोप लगाते हुए कहा, 'संविधान उन्हें चुभता है क्योंकि यह समानता, धर्मनिरपेक्षता और न्याय की बात करता है।' इससे पहले, होसबाले ने 26 जून को दिल्ली में आयोजित 'आपातकाल के 50 साल' कार्यक्रम में कहा था कि मूल संविधान में धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद के शब्द नहीं थे। उन्होंने यह भी कहा कि आपातकाल के दौरान इन शब्दों को जोड़ा गया था और इस पर बहस होनी चाहिए।


राहुल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, 'भाजपा और आरएसएस बहुजनों और गरीबों के अधिकार छीनकर उन्हें फिर से गुलाम बनाना चाहते हैं। संविधान जैसा शक्तिशाली हथियार उनसे छीनना इनका असली एजेंडा है।' होसबाले ने बिना किसी का नाम लिए कहा कि आपातकाल के दौरान संविधान की हत्या की गई थी और न्यायपालिका की स्वतंत्रता समाप्त कर दी गई थी।


इस विवाद में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी अपनी राय रखी। वाराणसी में एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, 'सर्वधर्म सद्भाव भारतीय संस्कृति का मूल है। धर्मनिरपेक्षता हमारी संस्कृति का मूल नहीं है और इस पर विचार होना चाहिए कि आपातकाल में जोड़ा गया धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाया जाए।' समाजवाद पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि 'समाजवाद का मूल विचार सभी को समान मानना है।'


यह ध्यान देने योग्य है कि 'धर्मनिरपेक्षता' और 'समाजवादी' शब्द 1976 में 42वें संशोधन के तहत जोड़े गए थे, जब देश में आपातकाल लागू था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा की थी, जो 21 मार्च 1977 तक जारी रहा। भाजपा ने आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर इसे 'संविधान हत्या दिवस' के रूप में मनाया।