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सरदार पटेल की भूमिका: भारत के एकीकरण की अद्भुत कहानी

इस लेख में हम सरदार वल्लभभाई पटेल की भूमिका और वी.पी. मेनन के योगदान के माध्यम से भारत के 562 रियासतों के एकीकरण की अद्भुत कहानी को जानेंगे। यह प्रक्रिया केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता के निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम थी। जानें कैसे इन महान नेताओं ने एकजुट भारत की नींव रखी और लोकतांत्रिक व्यवस्था को स्थापित किया।
 

भारत के एकीकरण की ऐतिहासिक यात्रा


नई दिल्ली: स्वतंत्रता के बाद भारत को एकजुट करने का जो कार्य हुआ, वह केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता के निर्माण की कहानी है। इस महान कार्य में सरदार वल्लभभाई पटेल की भूमिका को 'लौह पुरुष' की उपाधि ने अमर बना दिया। वी.पी. मेनन, जो इस प्रक्रिया के साक्षी और सहयोगी थे, ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'The Story of the Integration of Indian States' (1955) में इस प्रक्रिया का विस्तृत वर्णन किया है।


मेनन ने अपनी पुस्तक में पटेल को समर्पित करते हुए लिखा, 'आज हम राज्यों के एकीकरण को केवल देश की एकता के दृष्टिकोण से देखते हैं, लेकिन बहुत कम लोग यह सोचते हैं कि इस विशाल कार्य को संपन्न करने में कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, जब तक कि एक संयुक्त भारत का स्वरूप संविधान में स्थापित नहीं हुआ।'


562 रियासतों का एकीकरण

वी.पी. मेनन के अनुसार, स्वतंत्रता से पहले भारत में 562 स्वतंत्र रियासतें थीं, जिनमें से कुछ बड़ी और कुछ छोटी थीं। यह आंकड़ा 1927 में गठित बटलर समिति की रिपोर्ट से लिया गया था, जो ब्रिटिश शासन और रियासतों के संबंधों को स्पष्ट करने के लिए बनाई गई थी।


जब सरदार पटेल ने राज्यों के एकीकरण का कार्य संभाला, तब यह कार्य असंभव सा प्रतीत होता था। लेकिन उनकी कुशल नेतृत्व क्षमता और मेनन की रणनीतिक समझ ने इस चुनौती को ऐतिहासिक उपलब्धि में बदल दिया।


एकीकरण की प्रक्रिया का विवरण

मेनन ने अपनी पुस्तक में उल्लेख किया, '554 राज्यों में से हैदराबाद और मैसूर को छोड़कर बाकी सभी राज्यों का क्षेत्रीय ढांचा बदला गया। 216 राज्यों को उनके समीपवर्ती प्रांतों में मिला दिया गया। पांच राज्यों को केंद्र सरकार के प्रत्यक्ष नियंत्रण में मुख्य आयुक्त प्रांत के रूप में लिया गया, जिनमें 21 पंजाब की पहाड़ी रियासतें हिमाचल प्रदेश का हिस्सा बनीं। इस प्रकार 554 रियासतों के स्थान पर 14 प्रशासनिक इकाइयां अस्तित्व में आईं।'


राजाओं के साथ कूटनीतिक चुनौती

एकीकृत भारत की दिशा में सबसे कठिन कार्य था रियासतों के राजाओं को लोकतांत्रिक व्यवस्था स्वीकार करने के लिए तैयार करना। 5 जुलाई 1947 को जब राज्य मंत्रालय की स्थापना हुई, उसी दिन सरदार पटेल ने रियासतों के प्रति सद्भावना का भाव प्रकट किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की यह इच्छा नहीं है कि वह किसी भी रूप में रियासतों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करे।


हालांकि, 16 दिसंबर 1947 को दिए गए अपने वक्तव्य में पटेल का स्वर दृढ़ था। उन्होंने कहा कि राजाओं का भविष्य उनके लोगों और देश की सेवा में निहित है, न कि उनकी निरंकुश सत्ता के बने रहने में।


पटेल और मेनन की साझा दृष्टि

मेनन ने अपने संस्मरण में लिखा कि भारत का यह एकीकरण केवल एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं था, बल्कि एक सहयोगात्मक प्रयास था। यह एक संयुक्त प्रयास था जिसमें सरदार पटेल से लेकर हर छोटे-बड़े कर्मचारी तक ने योगदान दिया। हर व्यक्ति में एक ही उद्देश्य की भावना थी।


भारत का यह एकीकरण न केवल राजनीतिक सीमाओं को जोड़ने का कार्य था, बल्कि यह आत्मा से एक भारत के निर्माण की दिशा में सबसे बड़ा कदम था, जो आज भी सरदार पटेल की दूरदृष्टि और मेनन की नीति-कुशलता का जीवंत प्रतीक है।