सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: उपभोक्ता फोरम को मिले अधिकार, अब मिलेगी असली राहत
उपभोक्ता फोरम के अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
उपभोक्ता फोरम: सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि उपभोक्ता फोरम केवल अंतरिम आदेश नहीं, बल्कि अपने सभी आदेशों को लागू करने का अधिकार रखता है। यह फैसला उस कानूनी खामी को समाप्त करता है, जो पिछले 18 वर्षों से उपभोक्ताओं के लिए समस्याएं उत्पन्न कर रहा था। अब उपभोक्ताओं को केवल कागजों पर जीत नहीं, बल्कि वास्तविक राहत भी मिलेगी।
कानूनी स्थिति पर कोर्ट का रुख
न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने कहा कि 2002 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (सीपीए) में संशोधन के दौरान 'प्रत्येक आदेश' शब्द के स्थान पर 'अंतरिम आदेश' जोड़ा गया था। इस बदलाव के कारण उपभोक्ता मंच अपने अंतिम आदेशों को लागू करने में असमर्थ हो गए थे। अदालत ने माना कि यह त्रुटि उपभोक्ताओं के अधिकारों पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही थी और उन्हें वास्तविक न्याय से वंचित कर रही थी। हालांकि, संसद ने 2019 में इस गलती को सुधार लिया। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 1986 के अधिनियम की धारा 25 को किसी भी आदेश के प्रवर्तन की अनुमति देने के रूप में पढ़ा जाए।
उपभोक्ताओं के लिए राहत
पीठ ने कहा कि उपभोक्ताओं को ऐसा महसूस होना चाहिए कि उन्हें वास्तव में न्याय मिला है, न कि केवल कागजों पर। अदालत ने निर्देश दिया कि उपभोक्ता फोरम के आदेशों को सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत सिविल अदालतों की तरह लागू किया जाए।
मामले की पृष्ठभूमि
यह निर्णय पुणे स्थित पाम ग्रोव्स कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी के खरीदारों और बिल्डर के बीच विवाद से संबंधित है। 2007 में जिला उपभोक्ता फोरम ने बिल्डर को सोसाइटी के पक्ष में कन्वेयंस डीड निष्पादित करने का आदेश दिया था। लेकिन उच्च न्यायालय ने 2002 के संशोधन का हवाला देकर आदेश को निरस्त कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अब इस फैसले को पलटते हुए कहा कि ऐसे मामलों में निष्पादन याचिकाएं पूरी तरह विचारणीय हैं।
आंकड़े और असर
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने अदालत को बताया कि 2002 के संशोधन के कारण उपभोक्ताओं पर गंभीर असर पड़ा। जिला मंचों में लंबित निष्पादन याचिकाओं की संख्या 1992-2002 के बीच 1,470 थी, जो 2003 से 2019 के बीच बढ़कर 42,118 हो गई। 2019 के सुधार के बाद भी यह संख्या 2020 से 2024 के बीच बढ़कर 56,578 तक पहुंच गई। वहीं, राज्य उपभोक्ता मंचों में 6,104 और राष्ट्रीय आयोग (एनसीडीआरसी) में 1,945 निष्पादन मामले लंबित हैं।
भविष्य की दिशा
पीठ ने एनसीडीआरसी अध्यक्ष को निर्देश दिया है कि निष्पादन मामलों के शीघ्र निपटान के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। इसके अलावा, न्यायमित्र के रूप में वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता को नियुक्त किया गया है, जो प्रवर्तन ढांचे की गहन समीक्षा करेंगे।