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सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए विधेयकों की मंजूरी पर कोई समयसीमा नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए विधेयकों की मंजूरी पर कोई निश्चित समयसीमा नहीं हो सकती। इस निर्णय ने यह भी बताया कि राष्ट्रपति या राज्यपाल किसी विधेयक को अनिश्चितकाल तक रोक नहीं सकते। जानें इस निर्णय के पीछे की वजह और इसके संभावित प्रभावों के बारे में।
 

राष्ट्रपति संदर्भ मामले पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

राष्ट्रपति संदर्भ मामला: विधानसभा द्वारा पारित किसी विधेयक को राष्ट्रपति या राज्यपाल कितने समय तक रोक सकते हैं? क्या इस संदर्भ में कोई निश्चित समयसीमा निर्धारित की जा सकती है? राष्ट्रपति द्वारा मांगी गई सलाह पर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्टता प्रदान की है।

देश की सर्वोच्च संवैधानिक अदालत ने यह स्पष्ट किया है कि राष्ट्रपति या राज्यपाल के लिए किसी विधेयक को मंजूरी देने की प्रक्रिया में कोई निश्चित समयसीमा नहीं हो सकती। इसका अर्थ है कि संसद या राज्य विधानसभा द्वारा भेजे गए विधेयक पर राष्ट्रपति या राज्यपाल अपने विवेक से निर्णय ले सकते हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति या राज्यपाल किसी विधेयक को अनिश्चितकाल तक रोक नहीं सकते। पांच जजों की पीठ ने कहा कि न्यायालय समय-समय पर इस पर विचार कर सकता है।

गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए कहा कि राज्य विधानसभाओं में पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए कोई समयसीमा निर्धारित नहीं की जा सकती, और न्यायपालिका भी उन्हें मान्यता नहीं दे सकती। प्रधान न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से कहा कि यदि राज्यपाल को अनुच्छेद 200 के तहत उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना विधेयकों को रोकने की अनुमति दी जाती है, तो यह संघवाद के सिद्धांत के खिलाफ होगा। इस पीठ में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर भी शामिल थे।