सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: दहेज हत्या के मामले में सैन्य सेवा का बचाव अस्वीकार
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने दहेज हत्या के एक मामले में आरोपी पति की सैन्य सेवा को बचाव का आधार मानने से इनकार कर दिया है। यह फैसला महिला सुरक्षा के प्रति न्यायपालिका की दृढ़ प्रतिबद्धता को दर्शाता है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि कोई भी पेशा, चाहे वह कितना भी प्रतिष्ठित क्यों न हो, कानून से ऊपर नहीं हो सकता। यह निर्णय दहेज उत्पीड़न और महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में एक महत्वपूर्ण संदेश है। जानें इस फैसले के पीछे की पूरी कहानी और इसके व्यापक प्रभाव के बारे में।
Jun 24, 2025, 17:40 IST
महिला सुरक्षा के प्रति न्यायपालिका का सख्त रुख
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने दहेज हत्या के एक मामले में आरोपी पति की उस दलील को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने अपनी सैन्य सेवा की कठिनाइयों को अपने बचाव का आधार बनाया था। यह निर्णय महिला सुरक्षा और न्याय के प्रति न्यायपालिका की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह मामला एक महिला की दहेज के कारण हुई मृत्यु से संबंधित है, जिसमें आरोपी पति सेना में कार्यरत था। उसने तर्क दिया कि सैन्य सेवा की चुनौतियाँ और दबाव उसके व्यवहार या कथित अपराध का कारण बन सकते हैं।हालांकि, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने इस दलील को स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया। अदालत ने कहा कि सैन्य सेवा या किसी भी प्रतिष्ठित पेशे का होना किसी को दहेज उत्पीड़न या क्रूरता जैसे गंभीर अपराधों को करने का लाइसेंस नहीं देता। न्यायाधीशों ने यह भी बताया कि सेना के सदस्यों से उच्च नैतिक मानकों और अनुशासन का पालन करने की अपेक्षा की जाती है। उनका कर्तव्य केवल सीमा पर देश की रक्षा करना नहीं है, बल्कि अपने परिवार और समाज के प्रति भी जिम्मेदारियाँ निभाना है।
अदालत ने यह स्पष्ट किया कि कोई भी पेशा, चाहे वह कितना भी प्रतिष्ठित क्यों न हो, कानून से ऊपर नहीं हो सकता, विशेषकर महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में। यह निर्णय देश के कानून की समानता और सभी नागरिकों की जवाबदेही को मजबूत करता है, चाहे उनका पेशा कुछ भी हो। यह उन सभी के लिए एक कड़ा संदेश है जो अपने पेशे का उपयोग अपने आपराधिक कृत्यों को सही ठहराने के लिए करना चाहते हैं, विशेषकर दहेज हत्या जैसे संवेदनशील मामलों में। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया है कि कानून की नजर में सभी समान हैं और किसी को भी न्याय से बचने के लिए विशेष छूट नहीं मिलेगी।