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सुप्रीम कोर्ट का महाराष्ट्र सरकार को सख्त संदेश: 50% आरक्षण सीमा का पालन करें

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में 50% आरक्षण सीमा का पालन करने का सख्त निर्देश दिया है। अदालत ने चेतावनी दी है कि यदि राज्य सरकार इस आदेश का उल्लंघन करती है, तो चुनावों को रोकने में संकोच नहीं किया जाएगा। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि किसी भी नई आरक्षण व्यवस्था को लागू नहीं किया जा सकता। इस निर्णय ने पूरे देश में आरक्षण की अधिकतम सीमा पर बहस को फिर से जीवित कर दिया है।
 

सुप्रीम कोर्ट का आदेश


नई दिल्ली: महाराष्ट्र में आगामी स्थानीय निकाय चुनावों के संदर्भ में, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को स्पष्ट निर्देश दिए हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि चुनाव प्रक्रिया किसी भी ऐसी व्यवस्था में नहीं हो सकती, जिसमें कुल आरक्षण 50 प्रतिशत की संवैधानिक सीमा से अधिक हो। कोर्ट ने चेतावनी दी है कि यदि राज्य ने इस आदेश का उल्लंघन किया, तो वह चुनावों को रोकने में संकोच नहीं करेगा।


कोर्ट की स्थिति

पीठ ने और क्या कहा?


जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि स्थानीय निकायों में आरक्षण की स्थिति केवल वही मानी जाएगी जो 2022 में जे. के. बांठिया आयोग की रिपोर्ट से पहले लागू थी। बांठिया आयोग ने ओबीसी वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का सुझाव दिया था। चूंकि यह सिफारिश अभी भी सुप्रीम कोर्ट की समीक्षा के अधीन है, इसलिए अदालत ने किसी भी नई आरक्षण व्यवस्था को लागू करने पर असहमति जताई।


सुप्रीम कोर्ट की सख्त चेतावनी

सुप्रीम कोर्ट की दो टूक


सुनवाई के दौरान अदालत का रुख काफी सख्त था। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि यदि यह तर्क दिया जाता है कि नामांकन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और इसलिए कोर्ट को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, तो हम चुनावों पर रोक लगा देंगे। उन्होंने कहा कि हमारी संवैधानिक शक्तियों की परीक्षा न लें। पीठ ने यह भी कहा कि दो न्यायाधीशों वाली खंडपीठ संविधान पीठ द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को तोड़ने की अनुमति नहीं दे सकती।


नोटिस जारी

कोर्ट ने जारी किया नोटिस


सुप्रीम कोर्ट ने उन याचिकाओं पर भी नोटिस जारी किया है, जिनमें कहा गया है कि महाराष्ट्र के कुछ स्थानीय निकायों में कुल आरक्षण 70% तक पहुंच गया है। कोर्ट ने इस पर चिंता व्यक्त की और कहा कि यदि राज्य सरकार ने इस सीमा को पार करने का प्रयास किया, तो यह संविधान में निर्धारित संतुलन का उल्लंघन होगा।


अगली सुनवाई की तारीख

सरकार की दलील पर अगली सुनवाई 19 नवंबर तय


महाराष्ट्र सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से समय देने का अनुरोध किया, जिसे स्वीकार करते हुए पीठ ने अगली सुनवाई 19 नवंबर को निर्धारित की। हालांकि, न्यायालय ने राज्य सरकार को सख्त चेतावनी दी कि वह किसी भी स्थिति में 50% आरक्षण की सीमा से आगे न बढ़े।


आरक्षण पर बहस का पुनरुत्थान

संविधानिक सीमा को छूने वाली बड़ी बहस फिर तेज


सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी ने महाराष्ट्र के साथ-साथ पूरे देश में आरक्षण की अधिकतम सीमा पर बहस को फिर से जीवित कर दिया है। अदालत का स्पष्ट रुख है कि जब तक कोई संवैधानिक संशोधन नहीं होता, 50% से अधिक आरक्षण को स्वीकार नहीं किया जा सकता।