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सुप्रीम कोर्ट ने अब्दुल्ला आजम खान को दिया बड़ा झटका, फर्जी दस्तावेज मामले में एफआईआर रद्द करने से किया इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम खान को एक बड़ा झटका देते हुए फर्जी दस्तावेजों के मामले में दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट पर भरोसा करें। अब्दुल्ला ने पासपोर्ट प्राप्त करने के लिए फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल किया था, जिसमें उनकी जन्मतिथि को लेकर विवाद है। जानें इस मामले की पूरी जानकारी।
 

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

नई दिल्ली: समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान के बेटे, पूर्व विधायक अब्दुल्ला आजम खान को एक महत्वपूर्ण झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को पासपोर्ट प्राप्त करने के लिए फर्जी दस्तावेजों के इस्तेमाल के आरोप में दर्ज एफआईआर को रद्द करने से मना कर दिया। इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय को बरकरार रखा। अब्दुल्ला आजम खान ने हाईकोर्ट के फैसले के बाद सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश में किसी भी प्रकार की दखल देने से स्पष्ट रूप से इनकार किया।


जस्टिस सुंदरेश ने अब्दुल्ला आजम खान को राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट पर भरोसा करें और मामले को वहीं निपटने दें। उन्होंने कहा कि जब ट्रायल पूरा हो चुका है, तो हम हस्तक्षेप नहीं कर सकते। इससे पहले, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अब्दुल्ला आजम खान की याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि इस मामले में पूरा ट्रायल हो चुका है। अब्दुल्ला आजम खान के खिलाफ फर्जी दस्तावेजों के मामले में 9 सितंबर 2021 को आरोप तय किए गए थे। रामपुर की सिविल लाइन थाना पुलिस ने उनके खिलाफ यह मुकदमा दर्ज किया था।


एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि अब्दुल्ला आजम खान ने फर्जी दस्तावेजों का उपयोग करके पासपोर्ट बनवाया, जिसमें उनकी जन्मतिथि 30 सितंबर 1990 बताई गई है, जबकि स्कूल रिकॉर्ड के अनुसार उनकी असली जन्मतिथि 1 जनवरी 1993 है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो पैन कार्ड के मामले में भी अब्दुल्ला आजम खान को झटका दिया था। उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें रामपुर एमपी-एमएलए कोर्ट में चल रहे ट्रायल की संपूर्ण कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई थी। पक्षों की सुनवाई के बाद, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा और जुलाई में याचिका को खारिज कर दिया।