सुप्रीम कोर्ट ने तलाक-ए-हसन पर उठाए सवाल, क्या यह सभ्य समाज में स्वीकार्य है?
सुप्रीम कोर्ट की तलाक-ए-हसन पर आपत्ति
मुस्लिम समुदाय में प्रचलित तलाक-ए-हसन प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कड़ी आपत्ति जताई है। कोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या किसी सभ्य समाज में इस तरह के तलाक को स्वीकार किया जा सकता है। यह टिप्पणी तब आई जब एक महिला को उसके पति ने वकील के माध्यम से एकतरफा तलाक भेज दिया और मामला अदालत में पहुंच गया।
महिला की याचिका पर सुनवाई
जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता में तीन जजों की पीठ ने तलाक-ए-हसन की संवैधानिकता पर गंभीर विचार करने का संकेत दिया है। यह मामला संभवतः पांच जजों की बड़ी संविधान पीठ को भेजा जा सकता है।
याचिकाकर्ता बेनजीर हिना ने अदालत में शिकायत की कि उनके पति यूसुफ ने तलाक-ए-हसन का सहारा लेकर उन्हें एकतरफा तलाक दे दिया। उन्होंने मांग की कि मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लीकेशन एक्ट 1937 की धारा 2 को निरस्त किया जाए, जो मुसलमान पुरुषों को एकतरफा तलाक का अधिकार देता है।
संविधान का उल्लंघन
याचिका में यह भी कहा गया कि तलाक-ए-हसन संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करता है। याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की कि तलाक की प्रक्रिया लिंग और धर्म तटस्थ होनी चाहिए। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में शायरा बानो मामले में तत्काल तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को अवैध करार दिया था, जिसके बाद मुस्लिम महिला विवाह संरक्षण अधिनियम 2019 लागू हुआ।
तलाक-ए-हसन की प्रक्रिया
तलाक-ए-हसन एक सुन्नत आधारित तलाक की प्रक्रिया है, जिसमें तलाक तीन अलग-अलग चरणों में दिया जाता है।
- पहला तलाक: महिला के मासिक धर्म के बाद, जब वह पवित्र होती है और पति-पत्नी के बीच संबंध नहीं हुए होते, तब पति पहला तलाक देता है।
- दूसरा तलाक: अगले मासिक धर्म चक्र के बाद फिर पवित्रता की अवधि में दूसरा तलाक दिया जाता है।
- तीसरा तलाक: इसी तरह तीसरे तुहर (पवित्रता अवधि) में तीसरा तलाक दिया जाता है।
इस प्रक्रिया के दौरान:
- महिला के मासिक धर्म में होने पर तलाक नहीं दिया जा सकता।
- महिला गर्भवती हो तो तलाक नहीं दिया जा सकता।
- तीन चक्रों के बीच सुलह की गुंजाइश बनी रहती है।
तलाक-ए-हसन और तीन तलाक में अंतर
तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत में पति एक ही बार में तीन बार तलाक बोल देता है और विवाह तुरंत समाप्त हो जाता है। इसमें सुलह का कोई विकल्प नहीं होता। इसी कारण इसे कई मुस्लिम देशों में पहले ही बैन किया जा चुका है। जबकि तलाक-ए-हसन में प्रक्रिया तीन चरणों में होती है और सुलह के मौके मौजूद रहते हैं।