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सुप्रीम कोर्ट ने मेधा पाटकर की मानहानि मामले में दोषसिद्धि को बरकरार रखा

सुप्रीम कोर्ट ने मेधा पाटकर को मानहानि मामले में दोषी ठहराने का निर्णय बरकरार रखा है, लेकिन उन पर लगे ₹1 लाख के जुर्माने को माफ कर दिया है। यह मामला 23 साल पुराना है और इससे नागरिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर महत्वपूर्ण बहस उठी है। जानें इस विवाद की पूरी कहानी और इसके पीछे के कारण।
 

सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला

देश की सर्वोच्च अदालत ने आज (11 अगस्त, 2025) सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना द्वारा दायर मानहानि के मामले में दोषी ठहराए जाने के निर्णय को बरकरार रखा है। हालांकि, अदालत ने उन पर लगाए गए ₹1 लाख के जुर्माने को माफ कर दिया है, जिससे उन्हें कुछ राहत मिली है। यह निर्णय एक दो दशक पुराने कानूनी विवाद पर आया है, जिसने मेधा पाटकर और विनय कुमार सक्सेना के बीच गंभीर टकराव को उजागर किया है।


मानहानि का मामला: 23 साल पुराना विवाद

यह मामला वर्ष 2000 में शुरू हुआ, जब विनय कुमार सक्सेना, जो उस समय एक गैर-सरकारी संगठन 'नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज' के प्रमुख थे, ने मेधा पाटकर के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया। सक्सेना का आरोप था कि पाटकर ने 25 नवंबर, 2000 को एक प्रेस नोट जारी कर उन पर "हवाला लिंक", एक बाउंस हुआ ₹40,000 का चेक और कायर होने जैसे अपमानजनक आरोप लगाए थे।


न्यायिक प्रक्रिया: निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक

1 जुलाई, 2024 को, एक मजिस्ट्रेट अदालत ने मेधा पाटकर को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 500 के तहत दोषी पाया और उन्हें पांच महीने की साधारण कारावास की सजा सुनाई, साथ ही ₹10 लाख का जुर्माना भी लगाया। अप्रैल 2025 में, सत्र न्यायालय ने इस फैसले को बरकरार रखा, लेकिन पाटकर को अच्छे आचरण की प्रोबेशन पर रिहा कर दिया। दिल्ली हाईकोर्ट ने भी सत्र न्यायालय के फैसले को सही ठहराया।


आज, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने मेधा पाटकर की दोषसिद्धि को सही ठहराया, लेकिन उन पर लगाए गए ₹1 लाख के जुर्माने को रद्द कर दिया। अदालत ने प्रोबेशन की शर्तों को भी सरल बनाया।


सुप्रीम कोर्ट का फैसला और उसके मायने

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मेधा पाटकर की दोषसिद्धि को चुनौती देने वाली याचिका में कोई दम नहीं है। अदालत ने यह भी माना कि निचली अदालत या हाईकोर्ट के फैसलों में कोई अनियमितता नहीं थी। हालांकि, ₹1 लाख के जुर्माने को माफ करने का निर्णय पाटकर के लिए एक बड़ी राहत है। यह मामला नागरिक स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानहानि कानूनों पर महत्वपूर्ण बहस को जन्म देता है। मेधा पाटकर, जो नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख चेहरा रही हैं, सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के लिए अपनी मुखर आवाज़ के लिए जानी जाती हैं।