सुप्रीम कोर्ट में अरावली रेंज की सुरक्षा पर नया मामला
अरावली रेंज की सुरक्षा के लिए उठी आवाज
नई दिल्ली। अरावली रेंज की सुरक्षा से जुड़े पर्यावरण संरक्षण उपायों को कमजोर करने के आरोपों के चलते यह मामला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा है। पर्यावरण कार्यकर्ता और वकील हितेंद्र गांधी ने भारत के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत को '100-मीटर टेस्ट' नियम की समीक्षा के लिए पत्र लिखा है।
क्या है मामला?
गांधी ने अपने पत्र की एक प्रति भारत के राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भी भेजी है। इस पत्र में अरावली पहाड़ियों और रेंज की परिभाषा पर पर्यावरण मंत्रालय की सिफारिश को मंजूरी देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की पुनरावलोकन की मांग की गई है। नई परिभाषा के अनुसार, 'अरावली पहाड़ी' उन भू-आकृतियों को संदर्भित करती है जो अपने स्थानीय भू-भाग से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंची हैं, और अरावली रेंज ऐसी पहाड़ियों का समूह है जो एक-दूसरे से 500 मीटर की दूरी पर स्थित हैं।
पर्यावरणविदों की चिंताएं
इस पर विवाद बढ़ गया है क्योंकि पर्यावरणविदों का मानना है कि नई परिभाषा कानूनी सुरक्षा की कमी के कारण इस क्षेत्र के 90% हिस्से को समाप्त कर सकती है। गांधी ने अपने पत्र में कहा कि '100-मीटर का नियम ऐसे महत्वपूर्ण इकोलॉजिकल क्षेत्रों को बाहर करने का खतरा पैदा करता है जो ऊंचाई की सीमा को पूरा नहीं करते, लेकिन पारिस्थितिकी के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।' उन्होंने यह भी कहा कि निचली पहाड़ियों और जल पुनर्भरण क्षेत्रों की सुरक्षा आवश्यक है।
सुप्रीम कोर्ट में अपील
गांधी ने CJI सूर्यकांत से 20 नवंबर, 2025 के अपने हालिया आदेश में अरावली पहाड़ियों और पर्वत श्रृंखलाओं की पहचान के लिए अपनाए गए परिभाषा ढांचे पर पुनर्विचार करने की अपील की है। उन्होंने चेतावनी दी है कि ऊंचाई पर आधारित मानदंड अनजाने में पूरे उत्तर-पश्चिम भारत में पर्यावरण संरक्षण को कमजोर कर सकता है।
संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लेख
गांधी ने अपनी दलीलों को संवैधानिक सिद्धांतों पर आधारित बताया है, जिसमें उन्होंने अनुच्छेद 21 द्वारा स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार की गारंटी, अनुच्छेद 48A और 51A(g) का हवाला दिया, जो राज्य और नागरिकों पर पर्यावरण की रक्षा करने का कर्तव्य डालते हैं।