सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस यशवंत वर्मा के मामले की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई
28 जुलाई 2025 को, सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा से उनके निवास पर नकदी की बोरियों से जुड़े मामले में गंभीर प्रश्न पूछे। कोर्ट ने जस्टिस वर्मा से यह पूछा कि वे इन-हाउस जांच समिति के समक्ष क्यों उपस्थित हुए? क्या उन्होंने पहले वहां से अपने पक्ष में निर्णय लेने की कोशिश की थी? यह मामला जस्टिस वर्मा के खिलाफ संसद में लंबित निष्कासन प्रस्ताव और उनके आवास पर जले हुए नकदी नोटों से संबंधित है। इस मामले की सुनवाई जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ द्वारा की गई। अगली सुनवाई 30 जुलाई 2025 को होगी.
जस्टिस वर्मा के खिलाफ विवाद
जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ विवाद तब शुरू हुआ जब उनके आवास पर बड़ी मात्रा में नकदी की बोरियां और जले हुए नोट पाए गए। इस मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने एक इन-हाउस जांच समिति का गठन किया था। समिति की रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा को दोषी ठहराया गया और उनके खिलाफ महाभियोग की सिफारिश की गई, जिसके आधार पर संसद में निष्कासन प्रस्ताव पेश किया गया है, जो अभी विचाराधीन है.
जस्टिस वर्मा की याचिका
जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस जांच रिपोर्ट और महाभियोग की सिफारिश को रद्द करने की मांग की है। उनकी याचिका में उनकी पहचान को 'XXX' के रूप में गुप्त रखा गया है, जो इस मामले को और जटिल बनाता है। उनकी ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलीलें पेश कीं.
सुनवाई के दौरान उठे सवाल
सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपांकर दत्ता ने जस्टिस वर्मा के वकील कपिल सिब्बल से पूछा कि जब जांच समिति का गठन हुआ, तो जस्टिस वर्मा ने उसका विरोध क्यों नहीं किया? क्या यह इसलिए था कि उन्हें उम्मीद थी कि समिति का निर्णय उनके पक्ष में होगा? कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या जस्टिस वर्मा ने जांच प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश की.
जांच प्रक्रिया पर सवाल
कपिल सिब्बल ने दलील दी कि जांच समिति की प्रक्रिया में कई खामियां थीं और यह निष्पक्ष नहीं थी। उन्होंने कहा कि जस्टिस वर्मा को समिति के सामने पेश होने के लिए मजबूर किया गया था, और उनकी आपत्तियों को नजरअंदाज किया गया। सिब्बल ने यह भी तर्क किया कि जांच रिपोर्ट में तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया, जिसके आधार पर महाभियोग की सिफारिश अनुचित है.
गुप्त पहचान का विवाद
जस्टिस वर्मा की याचिका में उनकी पहचान को 'XXX' के रूप में दर्ज करना इस मामले को और जटिल बनाता है। आमतौर पर, इस तरह की गोपनीयता यौन उत्पीड़न, बलात्कार या नाबालिगों से जुड़े मामलों में अपनाई जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले निर्देश दिए हैं कि यौन अपराधों से जुड़े मामलों में पीड़ितों की पहचान उजागर नहीं की जानी चाहिए। हालांकि, इस मामले में जस्टिस वर्मा की पहचान को गुप्त रखने का निर्णय कई सवाल खड़े करता है, क्योंकि यह न तो यौन अपराध से संबंधित है और न ही इसमें कोई नाबालिग शामिल है.