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स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के झंडा फहराने की प्रक्रिया में अंतर

स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर झंडा फहराने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण अंतर है। जानें कि कैसे 15 अगस्त को ध्वजारोहण होता है और 26 जनवरी को झंडा फहराने की प्रक्रिया क्या है। यह जानकारी आपको राष्ट्रीय पर्वों के महत्व को समझने में मदद करेगी।
 

स्वतंत्रता दिवस 2025:

स्वतंत्रता दिवस 2025: हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी के आस-पास देशभक्ति की भावना पूरे देश में फैल जाती है। स्कूलों, कॉलेजों, कार्यालयों और कॉलोनियों में तिरंगा गर्व से लहराता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर झंडा फहराने के तरीके में क्या अंतर है?


ध्वजारोहण और झंडा फहराने में अंतर

कई लोग ध्वजारोहण और झंडा फहराने के बीच का अंतर नहीं समझ पाते। हालांकि, इन दोनों प्रक्रियाओं में एक महत्वपूर्ण भिन्नता है, जो हमारे राष्ट्रीय पर्वों से जुड़ी है। यदि आप भी इस विषय में उलझन में हैं, तो आइए इसे सरल भाषा में समझते हैं।


15 अगस्त को होता है ध्वजारोहण

स्वतंत्रता दिवस पर झंडा नीचे की ओर बंधा होता है, जिसे प्रधानमंत्री रस्सी से ऊपर खींचते हैं। जैसे ही झंडा ऊपर पहुंचता है, वह खुलता है और पूरे सम्मान के साथ लहराता है। इस प्रक्रिया को “ध्वजारोहण” कहा जाता है।


लाल किले से ध्वजारोहण का महत्व

15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिली थी और पहली बार ब्रिटिश झंडे की जगह तिरंगा लहराया गया। इसी परंपरा को निभाते हुए हर साल प्रधानमंत्री लाल किले से तिरंगा फहराते हैं और देश को संबोधित करते हैं।


26 जनवरी को होता है झंडा फहराना

गणतंत्र दिवस पर झंडा पहले से ही पोल के ऊपर बंधा होता है। राष्ट्रपति उसे केवल खोलते हैं, उसे ऊपर खींचना नहीं पड़ता। जैसे ही झंडा खुलता है, उसमें से फूलों की बारिश होती है।


गणतंत्र दिवस पर झंडा फहराने की प्रक्रिया का महत्व

26 जनवरी 1950 को हमारा संविधान लागू हुआ और भारत एक गणराज्य बना। इसलिए इस दिन झंडा फहराकर यह दर्शाया जाता है कि अब हम एक संप्रभु और स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में संविधान के अनुसार चल रहे हैं। अगली बार जब आप किसी राष्ट्रीय पर्व पर झंडा फहराते हुए देखें, तो इस अंतर को याद रखें। 15 अगस्त का ध्वजारोहण आज़ादी की याद दिलाता है, जबकि 26 जनवरी का झंडा फहराना हमारे संविधान की शक्ति का प्रतीक है।