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DSP संतोष पटेल का अनोखा कन्यादान: एक इंसानियत की कहानी

मध्य प्रदेश के DSP संतोष पटेल ने एक अद्भुत निर्णय लिया है, जिसमें उन्होंने 26 साल पहले अपने जीवन को बचाने वाले संतु मास्टर की बेटी का कन्यादान करने का संकल्प लिया है। यह कहानी न केवल कर्तव्य का पालन है, बल्कि मानवता का जश्न भी है। संतोष की यह यात्रा हमें यह सिखाती है कि अच्छाई हमेशा लौटकर आती है। जानें इस प्रेरणादायक कहानी के बारे में और कैसे एक रक्तदान ने जीवन को बदल दिया।
 

एक प्रेरणादायक कहानी


साल 2025 के अंत में एक दिल को छू लेने वाली घटना सामने आई है, जिसने लोगों के दिलों में गर्माहट और आंखों में आंसू ला दिए हैं। मध्य प्रदेश के DSP संतोष पटेल ने 26 साल पुरानी एक कृतज्ञता को याद करते हुए एक ऐसा निर्णय लिया, जो न केवल उनके कर्तव्य का पालन है, बल्कि मानवता का जश्न भी है।


एक जीवनदायिनी रक्तदान

1999 में, संतोष पटेल एक सामान्य युवक थे, जब एक गंभीर बीमारी ने उन्हें जीवन और मृत्यु के बीच खड़ा कर दिया। अंधविश्वास और झाड़-फूंक के कारण उनकी स्थिति बिगड़ गई थी। सतना के बिरला अस्पताल में डॉक्टरों ने कहा कि ऑपरेशन तभी संभव है जब खून मिल जाए। परिवार की उम्मीदें टूटने लगीं। तभी सफाईकर्मी संतु मास्टर ने बिना किसी स्वार्थ के खून देने का निर्णय लिया। उस एक पल ने संतोष को नया जीवन दिया।


संतु मास्टर की निस्वार्थता

जब अस्पताल में कोई भी खून देने को तैयार नहीं था, तब संतु मास्टर ने कहा, 'मेरा खून ले लीजिए।' उनके चेहरे पर डर नहीं, बल्कि मदद का आत्मविश्वास था। उनके खून से ऑपरेशन सफल हुआ और संतोष की सांसें लौट आईं। यह मदद किसी पहचान या जाति के आधार पर नहीं, बल्कि मानवता के आधार पर की गई थी।


सफलता की नई राह

संतु मास्टर के खून से मिली जिंदगी ने संतोष पटेल को संघर्ष करने की नई ऊर्जा दी। समय के साथ, संतोष ने शिक्षा, मेहनत और समर्पण को अपनी ताकत बनाया। धीरे-धीरे उनकी जिंदगी में सुधार आया और आज वह मध्य प्रदेश पुलिस में DSP के पद पर हैं। लेकिन इस सफलता के पीछे उनकी कृतज्ञता का भाव हमेशा बना रहा।


कन्यादान का संकल्प

DSP संतोष पटेल ने घोषणा की है कि वह संतु मास्टर की बेटी का कन्यादान करेंगे। उनके लिए यह केवल एक रस्म नहीं, बल्कि सम्मान और आभार का प्रतीक है। उनका कहना है कि यह कदम उस पिता की मानवता को अमर करने का प्रयास है, जिसने बिना किसी रिश्ते के जीवन दिया। यह निर्णय समाज को यह संदेश देता है कि अच्छाई हमेशा लौटकर आती है।


दर्द से उपजा सकारात्मक संकल्प

26 साल बाद जब DSP संतोष ने संतु मास्टर को धन्यवाद कहने का मन बनाया, तो उन्हें पता चला कि वह अब इस दुनिया में नहीं रहे। यह खबर बेहद भावुक करने वाली थी, लेकिन इसी दुख में संतोष को एक नई रोशनी दिखाई दी। उन्होंने तय किया कि कृतज्ञता का सम्मान केवल शब्दों से नहीं, बल्कि कर्मों से होगा।