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EPFO नियमों में बदलाव: बेरोजगारी की अवधि बढ़ी, विपक्ष ने उठाए सवाल

केंद्र सरकार ने EPFO नियमों में बदलाव किए हैं, जिसके तहत बेरोजगार सदस्य अब अपनी भविष्य निधि राशि 12 महीने की बेरोजगारी के बाद ही निकाल सकेंगे। इस निर्णय ने राजनीतिक विवाद को जन्म दिया है, विपक्ष ने इसे 'लूट' करार दिया है। कांग्रेस और टीएमसी जैसे दलों ने इन संशोधनों को तुरंत वापस लेने की मांग की है। श्रम मंत्रालय का कहना है कि यह निर्णय कर्मचारियों की दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता के लिए आवश्यक है। जानें इस मुद्दे पर और क्या कहा जा रहा है।
 

EPFO नियमों में बदलाव


EPFO नियमों में बदलाव: केंद्र सरकार द्वारा ईपीएफओ के नियमों में हालिया संशोधनों ने राजनीतिक विवाद को जन्म दिया है। अब बेरोजगार सदस्य अपनी भविष्य निधि राशि केवल 12 महीने की बेरोजगारी के बाद ही निकाल सकेंगे, जबकि पहले यह अवधि केवल दो महीने थी।


इसके अलावा, पेंशन निकासी की अवधि को दो महीने से बढ़ाकर 36 महीने कर दिया गया है, और सदस्यों के योगदान का 25 प्रतिशत हिस्सा सेवानिवृत्ति तक उनके खाते में बंद रहेगा। विपक्ष ने इस कदम को 'वेतनभोगी वर्ग के खिलाफ साजिश' करार देते हुए इसे तुरंत वापस लेने की मांग की है।


विपक्ष की प्रतिक्रिया

विपक्ष ने कहा 'यह सुधार नहीं, लूट है'


कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने इन नियमों को 'क्रूरता' बताते हुए कहा कि बेरोजगारों को उनकी बचत से वंचित किया जा रहा है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप की मांग करते हुए कहा, 'यह सुधार नहीं, डकैती है।'


टीएमसी सांसद साकेत गोखले ने इन बदलावों को 'चौंकाने वाला' और 'मजाक' बताया। उनका कहना है कि जब लोग बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं, तब उनकी बचतों को एक साल तक रोकना 'खुलेआम चोरी' है। गोखले ने आरोप लगाया कि सरकार को आने वाले महीनों में बेरोजगारी बढ़ने की आशंका है, इसलिए वह अग्रिम रूप से धन रोकने की तैयारी कर रही है।


सरकार का दृष्टिकोण

'लंबी अवधि की सामाजिक सुरक्षा'


सरकारी सूत्रों के अनुसार, इन संशोधनों का उद्देश्य वेतनभोगी वर्ग को दीर्घकालिक सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है। श्रम मंत्री मनसुख मांडविया की अध्यक्षता में हुई सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज की बैठक में कहा गया कि अधिकांश लोग कुछ महीनों में दोबारा नौकरी पा लेते हैं, जिससे उनकी पेंशन पात्रता टूट जाती है। नई नीति से उनकी सेवा निरंतरता बनी रहेगी और पेंशन लाभ सुरक्षित रहेंगे।


अधिकारियों का मानना है कि 10 साल की न्यूनतम सेवा आवश्यकता पूरी करने में यह नीति मददगार साबित होगी और सदस्य लंबे समय तक सामाजिक सुरक्षा के दायरे में बने रहेंगे।


विपक्ष का आरोप

सरकार आर्थिक संकट छिपा रही है


विपक्षी दलों का कहना है कि यह फैसला दरअसल सरकार की 'आर्थिक नाकामी' का परिणाम है। कांग्रेस प्रवक्ता शमा मोहम्मद ने कहा कि सरकार इसे 'सरलीकरण' का नाम दे रही है, जबकि असल में यह वेतनभोगी वर्ग की बचतों पर नियंत्रण की कोशिश है। उन्होंने कहा, 'यह नीति आर्थिक कुप्रबंधन की सजा है, जो मेहनतकश लोगों को दी जा रही है।' विपक्षी नेताओं ने आशंका जताई कि जब देश में नौकरी के अवसर घट रहे हैं, तब कर्मचारियों की जमा पूंजी तक पहुंच रोकना उन्हें आर्थिक संकट में धकेलने जैसा है।


विपक्ष की मांग

'तत्काल वापस लें संशोधन'


कांग्रेस, टीएमसी और कई अन्य दलों ने एकजुट होकर इन संशोधनों को तत्काल वापस लेने की मांग की है। विपक्ष ने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने अपने फैसले पर पुनर्विचार नहीं किया तो इस मुद्दे को संसद से लेकर सड़क तक उठाया जाएगा।


इस बीच, श्रम मंत्रालय का कहना है कि ईपीएफओ के नए नियमों पर व्यापक समीक्षा के बाद निर्णय लिया गया है और यह 'कर्मचारियों की दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता' के लिए जरूरी है।