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अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस: पानीपत में साक्षरता दर में सुधार

आज अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस पर पानीपत में साक्षरता दर में सुधार की जानकारी साझा की गई है। बेटियों की साक्षरता दर में पिछले 14 वर्षों में 11.46 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो 80.1 प्रतिशत तक पहुंच गई है। हालांकि, यह अभी भी बेटों की तुलना में कम है। इस लेख में 86 वर्षीय जगमती की प्रेरणादायक कहानी और शिक्षा विभाग के उल्लास कार्यक्रम के तहत निरक्षर लोगों को साक्षर बनाने की पहल का विवरण दिया गया है।
 

अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस का महत्व

अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस (पानीपत): आज हम अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस मना रहे हैं। इस वर्ष की थीम है - डिजिटल युग में साक्षरता को बढ़ावा देना। पिछले 14 वर्षों में बेटियों ने साक्षरता के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है, उनकी साक्षरता दर 11.46 प्रतिशत बढ़कर 80.1 प्रतिशत तक पहुंच गई है। हालांकि, यह अभी भी बेटों की तुलना में 13 प्रतिशत कम है। पानीपत में बेटों (पुरुषों) की साक्षरता दर 92.92 प्रतिशत है, जो 2011 में 85.85 प्रतिशत थी। इसी तरह, बेटियों (महिलाओं) की साक्षरता दर 14 वर्षों में 68.64 से बढ़कर 80.1 प्रतिशत हो गई है। 2011 में जिले की औसत साक्षरता 77.73 प्रतिशत थी, जो अब 86.98 प्रतिशत तक पहुंच गई है।


पानीपत में साक्षरता दर का विश्लेषण

पानीपत में साक्षरता दर का हाल

पानीपत में साक्षरता के आंकड़े प्रेरणादायक हैं। बेटों की साक्षरता दर 2011 में 85.85% से बढ़कर 92.92% हो गई है। बेटियों की साक्षरता दर 14 वर्षों में 68.64% से 80.1% तक पहुंची है। जिले की औसत साक्षरता 2011 में 77.73% थी, जो अब बढ़कर 86.98% हो गई है। यह सुधार शिक्षा अभियानों और सरकारी योजनाओं का परिणाम है, लेकिन लिंग अंतर को समाप्त करने की दिशा में और प्रयासों की आवश्यकता है।


86 वर्षीय जगमती की प्रेरणादायक कहानी

86 वर्षीया जगमती बनीं साक्षर

इसराना की 86 वर्षीय जगमती ने पढ़ाई की इच्छा से उल्लास कार्यक्रम में भाग लिया। उन्होंने दूसरे चरण की परीक्षा पास कर खुद को साक्षर बना लिया। वे स्वयं केंद्र तक पढ़ने जाती थीं, जो यह दर्शाता है कि साक्षरता की कोई उम्र नहीं होती।


बुजुर्गों को साक्षर बनाने की पहल

अब तो 80 वर्ष तक के बुजुर्गों को बना रहे साक्षर

शिक्षा विभाग के उल्लास कार्यक्रम के तहत निरक्षर लोगों को साक्षर बनाने का कार्य जारी है। 2023 और 2024 के शैक्षणिक सत्र में लगभग 15,384 लोगों को साक्षर बनाया गया है। इन दो वर्षों में 22 हजार परीक्षार्थियों ने परीक्षा दी, जिनमें से 15,384 यानी 69.92 प्रतिशत सफल हुए। जिला कॉर्डिनेटर जसबीर सिंह ने बताया कि निरक्षर से साक्षर बनने का सफर परीक्षा के माध्यम से तय होता है। परीक्षार्थी 150 अंकों की परीक्षा देते हैं, जो दो चरणों में होती है। इसमें 15 से 80 साल तक के लोग शामिल होते हैं। विभाग के शिक्षा स्वयंसेवक इन लोगों को खोजते हैं और उनकी रुचि भी पूछते हैं।


परीक्षा की प्रक्रिया

पांचवीं कक्षा स्तर तक ही होती है पढ़ाई

साक्षर बनाने के लिए 150 अंकों की परीक्षा होती है, जिसमें दो चरण होते हैं। परीक्षा में अक्षरों से शब्द बनाना, चित्र देखकर नाम लिखना, वस्तुओं की गिनती करना और वाक्य मिलाना जैसे सरल प्रश्न शामिल होते हैं। यह पाठ्यक्रम पहली, तीसरी और पांचवीं कक्षा के स्तर का होता है। परीक्षा पास करने के बाद ये लोग आठवीं और दसवीं कक्षा की पढ़ाई जारी रख सकते हैं। आवश्यकता पड़ने पर राजकीय स्कूलों को केंद्र बनाया जाता है और स्वयंसेवक शिक्षक घरों पर भी पढ़ाते हैं।