अक्षय नवमी व्रत कथा: आंवला नवमी का महत्व और पूजा विधि
अक्षय नवमी का महत्व
अक्षय नवमी व्रत कथा: अक्षय नवमी, जिसे आंवला नवमी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक विशेष महत्व रखती है। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है, साथ ही मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की आराधना भी की जाती है। यह परंपरा है कि इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे भोजन करना चाहिए। मान्यता है कि आंवला नवमी पर किए गए पुण्य का फल जन्मों तक बना रहता है।
इस वर्ष की आंवला नवमी
आज, 31 अक्टूबर को आंवला नवमी मनाई जा रही है। इस दिन विधिपूर्वक पूजा और कथा का पाठ करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है। यहां पर अक्षय नवमी व्रत कथा का विवरण प्रस्तुत है।
अक्षय नवमी व्रत कथा
शास्त्रों के अनुसार, एक बार मां लक्ष्मी धरती पर भ्रमण करने आईं। उन्होंने देखा कि सभी लोग भगवान शिव और विष्णु की पूजा कर रहे हैं। उनके मन में विचार आया कि दोनों देवताओं की पूजा एक साथ कैसे की जाए। तभी उन्हें ख्याल आया कि आंवले के पेड़ के नीचे पूजा की जा सकती है, क्योंकि तुलसी और आंवला दोनों में अनेक गुण होते हैं।
इसके बाद, मां लक्ष्मी ने आंवले के पेड़ के नीचे दोनों देवताओं की पूजा की। उनकी भक्ति को देखकर दोनों देव प्रकट हुए। मां लक्ष्मी ने पेड़ के नीचे भोजन बनाकर उन्हें परोसा। तभी से कार्तिक शुक्ल नवमी को अक्षय नवमी मनाने की परंपरा शुरू हुई।
आंवला नवमी की पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, काशी में एक धर्मात्मा वैश्य रहते थे। उनके पास धन-धान्य की कोई कमी नहीं थी, लेकिन संतान न होने के कारण वे दुखी थे। एक दिन उनकी पड़ोसन ने उनकी पत्नी को सलाह दी कि पुत्र पाने के लिए एक पराए बालक की बलि भैरव को चढ़ानी चाहिए। वैश्य ने इस पर आपत्ति जताई, लेकिन पत्नी की इच्छा इतनी प्रबल थी कि वह लालच में पड़ गई।
एक दिन उसने कुएं में एक कन्या गिराकर भैरव को बलि दे दी। इसके परिणामस्वरूप उसकी पत्नी को कोढ़ हो गया और लड़की की आत्मा उसे सताने लगी। जब वैश्य ने पूछा, तो पत्नी ने सब कुछ बता दिया। वैश्य ने कहा कि गोवध, ब्राह्मण वध और बाल वध सबसे बड़ा पाप है, इससे कोई भला नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि गंगा तट पर भजन करो और स्नान करो, इससे मुक्ति मिलेगी।
पत्नी ने पश्चाताप किया और मां गंगा की शरण में गई। गंगा ने उसे कार्तिक शुक्ल नवमी को आंवले के पेड़ की पूजा और आंवला खाने का निर्देश दिया। महिला ने वैसा ही किया और व्रत-पूजन से रोग मुक्त हो गई। इसके कुछ समय बाद, उसे संतान सुख भी प्राप्त हुआ।