आंध्र प्रदेश सरकार की नई समिति: सोशल मीडिया पर अफवाहों पर लगेगी लगाम
सोशल मीडिया पर नियंत्रण के लिए समिति का गठन
राष्ट्रीय समाचार: आंध्र प्रदेश सरकार ने सोशल मीडिया पर फैल रही गलत सूचनाओं को रोकने के लिए एक नई समिति का गठन किया है। इस समिति में राज्य के कई मंत्री शामिल हैं, जिनका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भड़काऊ सामग्री या गलत खबरें जनता तक न पहुँचें। नेपाल और लद्दाख में हाल में हुई हिंसा के बाद सरकार ने इसे आवश्यक समझा है, क्योंकि वहां सोशल मीडिया ने हिंसा को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
समिति में शामिल मंत्री
नायडू सरकार की इस नई समिति में आईटी मंत्री नारा लोकेश, स्वास्थ्य मंत्री सत्य कुमार यादव, नागरिक आपूर्ति मंत्री नादेंदला मनोहर, आवास और जनसंपर्क मंत्री कोलुसु पार्थसारथी और गृह मंत्री वांगलापुडी अनीता शामिल हैं। ये मंत्री मिलकर सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की निगरानी करेंगे। सरकार की इच्छा है कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म अपनी जिम्मेदारी समझें और जनता को नुकसान पहुँचाने वाली खबरें न फैलाएं।
हिंसा से सबक लेकर उठाए गए कदम
नेपाल और लद्दाख में हाल में हुई हिंसा में सोशल मीडिया की भूमिका स्पष्ट रूप से देखी गई। गलत जानकारी और भड़काऊ पोस्ट्स ने युवाओं को उकसाया, जिससे हालात बिगड़ गए। इसी को ध्यान में रखते हुए आंध्र प्रदेश ने पहले से कदम उठाने का निर्णय लिया है। सरकार चाहती है कि अफवाहें शुरू होते ही रोकी जाएं ताकि समाज में शांति बनी रहे। यदि शुरुआत में ही गलत सूचनाओं को पकड़ा जाए, तो बड़ी घटनाओं से बचा जा सकता है। प्रशासन मानता है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का उपयोग जिम्मेदारी से होना चाहिए। यही कारण है कि सरकार सोशल मीडिया पर पूरी तरह से नजर रखने की योजना बना रही है।
समिति का कार्यक्षेत्र
यह नई समिति मौजूदा कानूनों, अंतरराष्ट्रीय नियमों और सोशल मीडिया कंपनियों की जिम्मेदारियों की जांच करेगी। उनका कार्य यह देखना होगा कि कौन सी पोस्ट समाज में तनाव फैला सकती है और कौन सी खबर गलत है। समिति सोशल मीडिया कंपनियों से यह भी पूछ सकती है कि उन्होंने समय पर कार्रवाई क्यों नहीं की। इसके अलावा, समिति यह तय करेगी कि किन मामलों में कड़ी कार्रवाई आवश्यक है। यदि कोई प्लेटफॉर्म बार-बार नियमों का उल्लंघन करता है, तो उस पर जुर्माना लगाया जा सकता है। समिति हर महीने रिपोर्ट भी पेश करेगी ताकि जनता को पता चले कि कितनी फेक खबरें रोकी गईं।
नागरिकों को मिलने वाले लाभ
सरकार का कहना है कि इस कदम से आम जनता को लाभ होगा। जब गलत सूचनाएं रोकी जाएंगी, तो न तो अफरा-तफरी फैलेगी और न ही लोगों की जान खतरे में पड़ेगी। लोगों को विश्वास रहेगा कि सोशल मीडिया पर पढ़ी गई जानकारी सही और जिम्मेदारी से आई है। साथ ही, यह कदम बच्चों और युवाओं को गलत दिशा में जाने से रोकेगा। कई बार झूठी अफवाहें लोगों को हिंसक बना देती हैं, जिससे जान-माल का नुकसान होता है। अब नागरिक अधिक सुरक्षित महसूस करेंगे और समाज में स्थिरता बनी रहेगी।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
हालांकि, विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार इस समिति के माध्यम से लोगों की अभिव्यक्ति पर रोक लगा सकती है। उनका आरोप है कि असली मकसद आलोचकों को चुप कराना है। लेकिन सरकार का कहना है कि समिति केवल फेक न्यूज और अफवाहों को रोकने के लिए है, न कि लोगों की आवाज दबाने के लिए। विपक्ष मानता है कि इस फैसले से लोकतांत्रिक आजादी खतरे में आ सकती है। उनका कहना है कि सरकार को आलोचना सहनी चाहिए, न कि उसे रोकना चाहिए। वहीं, सत्ता पक्ष का तर्क है कि सोशल मीडिया का जिम्मेदार उपयोग होना आवश्यक है और यह कदम उसी दिशा में है।
अन्य राज्यों के लिए उदाहरण
आंध्र प्रदेश का यह कदम देश के अन्य राज्यों के लिए भी एक उदाहरण बन सकता है। यदि यह समिति सही तरीके से कार्य करती है, तो संभव है कि अन्य राज्य भी ऐसी समितियां बनाएं। क्योंकि सोशल मीडिया पर गलत खबरें रोकना अब देशभर की एक बड़ी चुनौती बन चुकी है। आजकल हर छोटा मुद्दा ऑनलाइन फैलकर बड़ा विवाद बन जाता है। यदि समय पर अफवाहों पर रोक लगाई जाए, तो कई बड़े संकट टाले जा सकते हैं। आंध्र सरकार का यह कदम भविष्य में एक राष्ट्रीय नीति की नींव भी रख सकता है।