ईरान-इजराइल संघर्ष: भारत के व्यापार पर संभावित प्रभाव
ईरान की प्रतिक्रिया और व्यापार पर प्रभाव
नई दिल्ली - ईरान ने अपनी न्यूक्लियर सुविधाओं पर अमेरिकी हमलों की तीखी आलोचना की है, इसे 'क्रूर सैन्य आक्रमण' बताते हुए अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन करार दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह संघर्ष और बढ़ता है, तो इसका सबसे गंभीर असर भारत के पश्चिम एशिया के देशों के साथ व्यापार पर पड़ेगा। इसमें ईरान, इराक, जॉर्डन, लेबनान, सीरिया और यमन जैसे देश शामिल हैं, जहां भारत का कुल निर्यात 8.6 अरब डॉलर और आयात 33.1 अरब डॉलर तक पहुंचता है।
वित्त वर्ष 2024-25 में भारत ने ईरान को 1.24 अरब डॉलर का निर्यात किया, जिसमें बासमती चावल (753.2 मिलियन डॉलर), केले, सोया मील, चना और चाय जैसे कृषि उत्पाद शामिल हैं। इस दौरान भारत ने ईरान से 441.8 मिलियन डॉलर का आयात भी किया। इज़राइल के साथ भारत का व्यापार 2.1 अरब डॉलर (निर्यात) और 1.6 अरब डॉलर (आयात) रहा। GTRI के अनुसार, ये दोनों देश पहले से ही अमेरिका के प्रतिबंधों के कारण वित्तीय दबाव में हैं। युद्ध के कारण भुगतान प्रणाली और शिपिंग में जोखिम बढ़ने से भारत का व्यापार और प्रभावित हो सकता है।
हॉर्मुज जलडमरूमध्य को लेकर सबसे बड़ी चिंता है, जहां से भारत के 60-65% कच्चे तेल की आपूर्ति होती है। ईरान ने इस जलमार्ग को बंद करने की धमकी दी है, जो वैश्विक तेल व्यापार का लगभग 20 प्रतिशत संभालता है। यह जलडमरूमध्य ईरान और ओमान/संयुक्त अरब अमीरात के बीच स्थित है, और इसके जरिए सऊदी अरब, ईरान, इराक, कुवैत और कतर से तेल और एलएनजी का निर्यात होता है। भारत, जो अपनी 80% से अधिक ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए आयात पर निर्भर है, यदि यहां आपूर्ति बाधित होती है, तो देश में ईंधन महंगा होगा, मुद्रास्फीति बढ़ेगी, रुपये पर दबाव बनेगा और राजकोषीय संतुलन बिगड़ सकता है।
भारत और ईरान के बीच ऐतिहासिक और रणनीतिक संबंध हैं। चाबहार पोर्ट, जो भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक सीधी पहुंच देता है, भारत की नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। वहीं, भारत अमेरिका, इज़राइल और खाड़ी देशों के साथ भी मजबूत संबंध रखता है। इन सभी के युद्ध में शामिल होने से भारत की कूटनीतिक स्थिति और जटिल हो गई है।
FIEO के सीईओ ने कहा कि वर्तमान में दुनिया में दो युद्ध चल रहे हैं, जिसके कारण यूरोपीय बाजार में गैर-जरूरी लग्जरी सामानों की मांग में तेजी से कमी आई है। इससे भारत से निर्यात होने वाले कारपेट और अन्य लग्जरी सामानों की मांग भी काफी कम हो गई है।