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एयर इंडिया फ्लाइट 182 की त्रासदी: बचाव कार्यों में आई चुनौतियाँ

1985 में एयर इंडिया फ्लाइट 182 की दुर्घटना ने बचाव कार्यों को गंभीर चुनौती दी। इस घटना में भयंकर आग ने राहत प्रयासों को बाधित किया, जिससे पीड़ितों की पहचान और मलबे से सुराग जुटाने में कठिनाई हुई। जानें इस त्रासदी के बारे में और कैसे बचाव दल ने स्थिति का सामना किया।
 

1985 की एयर इंडिया फ्लाइट 182 की दुर्घटना

इस त्रासदी के दौरान, एयर इंडिया की फ्लाइट 182, जिसे कनिष्क बमबारी के नाम से जाना जाता है, ने 1985 में एक गंभीर दुर्घटना का सामना किया। यह घटना आयरलैंड के तट के निकट हुई, जहाँ विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद भयंकर आग ने बचाव कार्यों को अत्यंत कठिन बना दिया।

विमान में मौजूद जेट फ्यूल की भारी मात्रा ने आग को इतना भयंकर और अनियंत्रित बना दिया कि बचाव दल के लिए मलबे के करीब पहुंचना लगभग असंभव हो गया। धधकती लपटों और अत्यधिक गर्मी ने दुर्घटनास्थल को एक जलते हुए नरक में बदल दिया, जिससे जीवित बचे लोगों की खोज में गंभीर बाधाएँ उत्पन्न हुईं।

यह आग कई घंटों तक जलती रही, जिससे बचाव कार्यों में देरी हुई और मलबे के बड़े हिस्से तक पहुंचने की संभावना कम हो गई। बचावकर्मी दूर से ही स्थिति का आकलन कर रहे थे, जबकि पास जाने का हर प्रयास खतरनाक साबित हो रहा था।

जेट फ्यूल के इस भयंकर इन्फर्नो ने न केवल प्रारंभिक बचाव कार्यों को बाधित किया, बल्कि इस त्रासदी की भयावहता को भी बढ़ा दिया, जिससे पीड़ितों की पहचान और मलबे से सुराग जुटाने में कठिनाई हुई। यह घटना के बाद की सबसे बड़ी बाधाओं में से एक थी जिसने उस दुखद दिन के बाद की कार्रवाई को प्रभावित किया।