एलन मस्क की विवादास्पद पोस्ट: क्या ब्रिटिश कभी भारत के उपनिवेशी थे?
सोशल मीडिया पर मचा बवाल
एलन मस्क: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक पोस्ट ने भारतीय और अंतरराष्ट्रीय यूजर्स के बीच विवाद उत्पन्न कर दिया है। 'Freedomain' नामक हैंडल द्वारा साझा की गई इस पोस्ट में यह दावा किया गया कि ब्रिटिश कभी भारत पर शासन नहीं करते थे और भारत कभी ब्रिटेन का उपनिवेश नहीं रहा। पोस्ट में यह तर्क दिया गया कि जैसे भारतीय इंग्लैंड जाकर ब्रिटिश बन सकते हैं, वैसे ही ब्रिटिश भारत आकर भारतीय बन गए।
पोस्ट का तर्क: ब्रिटिश कभी भारत के शासक नहीं थे
'Freedomain' के संचालक स्टीफन मोलिनेउक्स ने कहा कि यदि कोई भारतीय इंग्लैंड जाकर अपनी पहचान बदलकर ब्रिटिश बन सकता है, तो ब्रिटिश भी भारत में आकर भारतीय बन गए। उनके अनुसार, इस तर्क के आधार पर ब्रिटिश शासन का अस्तित्व नहीं था और उपनिवेशवाद कभी नहीं हुआ।
मस्क की प्रतिक्रिया पर सोशल मीडिया में बवाल
मस्क की 'थिंकिंग' इमोजी ने इस पोस्ट को और अधिक विवादास्पद बना दिया। अब तक इस पोस्ट को 1.9 करोड़ से अधिक बार देखा जा चुका है और मस्क की प्रतिक्रिया को 1.7 करोड़ बार देखा गया। 10,000 से ज्यादा यूजर्स ने कमेंट करते हुए मस्क से सवाल किए और ब्रिटिश उपनिवेशवाद की गंभीरता को कम आंकने का आरोप लगाया।
सोशल मीडिया पर जारी बहस
एक यूजर ने लिखा कि इस तर्क के अनुसार, जब जर्मनों ने 1940 में फ्रांस में कदम रखा, तो वे फ्रांसीसी बन गए। इसी तरह, 2003 में अमेरिकी अफगान और इराकी बन गए। अब रूस की सेना यूक्रेनियों हैं। उन्हें वापस जाने की कोई जरूरत नहीं।
एक अन्य यूजर ने कहा कि कभी उम्मीद नहीं थी कि @elonmusk भी इस कमजोर तर्क पर विचार करेंगे। अगर ब्रिटिश वास्तव में भारत में बस जाते, कमाते और खर्च करते, बजाय लूट कर संसाधन वापस ब्रिटेन भेजने के, तो मामला अलग होता। कई विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत में बसकर स्थानीय संस्कृति में घुल-मिल गए। ब्रिटिश अलग रहे और कभी भारतीय समाज का हिस्सा नहीं बने। एक भारतीय इंग्लैंड में तब 'इंग्लिश' बनता है जब वह स्थायी रूप से बस जाए; अन्यथा यह केवल इमिग्रेशन है। इसी तरह, ब्रिटिश भारत में केवल तब भारतीय कहे जा सकते थे जब उन्होंने यहां बसकर स्थानीय समाज में घुल-मिलकर रहे होते, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यही कारण है कि वे उपनिवेशवादी थे।
इस विवादित पोस्ट और मस्क की प्रतिक्रिया के बाद सोशल मीडिया पर ब्रिटिश उपनिवेशवाद, ऐतिहासिक सच्चाई और आधुनिक तर्कशक्ति को लेकर बहस जोर पकड़ गई है। इतिहासकारों और यूजर्स ने मस्क से सवाल पूछते हुए इसे संवेदनशील मुद्दा बताया है।