ऑनलाइन गेमिंग उद्योग पर नए कानून का प्रभाव और चुनौतियाँ
ऑनलाइन गेमिंग उद्योग की स्थिति
बेशक, एक स्वस्थ समाज के लिए यह आवश्यक है कि ऑनलाइन गेमिंग क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के पुनर्वास की उचित व्यवस्था की जाए। लेकिन इसे एक पूर्व शर्त बनाकर इस उद्योग से करोड़ों की समस्याओं को बढ़ाना किसी भी समाज के लिए स्वीकार्य नहीं है।
विधेयक का महत्व
ऑनलाइन गेमिंग का एक बड़ा हिस्सा अब भी संगठित जुए के रूप में कार्यरत है। इसलिए, इसे प्रतिबंधित करने के लिए लाए गए विधेयक को देर से ही सही, लेकिन एक सकारात्मक कदम माना जा सकता है। यह भी सराहनीय है कि इस विधेयक में उन ऑनलाइन खेलों को शामिल नहीं किया गया है, जिनमें पैसे का लेन-देन नहीं होता। हालांकि, इस उद्योग में कई स्वार्थ जुड़े हुए हैं, इसलिए कानून के प्रभावी कार्यान्वयन को लेकर चिंताएँ बनी हुई हैं। गेमिंग उद्योग इसे न्यायालय में चुनौती देने की योजना बना रहा है और इसके खिलाफ सरकार को प्रभावित करने के लिए बड़े पैमाने पर लॉबिंग भी कर रहा है।
सरकार की चुनौती
इसलिए, प्रस्तावित कानून को लागू करना नरेंद्र मोदी सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा होगी। सरकार ने स्वयं बताया है कि देश के युवाओं में ऑनलाइन गेमिंग की लत बढ़ती जा रही है, जिसके कारण हर साल 45 करोड़ लोग पैसे खोते हैं। ऑनलाइन गेमिंग के कारण घरेलू विवाद और हिंसा के मामले भी बढ़ रहे हैं, और कई आत्महत्याओं की घटनाएँ भी सामने आ रही हैं। इस उद्योग की वृद्धि लोगों की इसी बदहाली पर निर्भर है।
आर्थिक पहलू
इस उद्योग के माध्यम से हर साल सरकार को 20 हजार करोड़ रुपए का टैक्स मिलता है। लेकिन सरकार को इस तरह की दलीलों से प्रभावित नहीं होना चाहिए। वर्तमान में, उसने राजस्व के मुकाबले सामाजिक हित को प्राथमिकता दी है, और इसे बनाए रखना चाहिए। सामाजिक बुराई फैलाने वाले हर उद्योग से कुछ लोगों की आजीविका चलती है। जब भी बुराई को रोका जाएगा, ऐसे लोगों को नुकसान होगा। निश्चित रूप से, एक स्वस्थ स्थिति यह होगी कि उनके पुनर्वास की उचित व्यवस्था की जाए, लेकिन इसे एक पूर्व शर्त बनाकर जुए जैसे उद्योग से करोड़ों की समस्याओं को बढ़ाना किसी भी स्वस्थ समाज के लिए स्वीकार्य नहीं है।