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चंडीगढ़ में 20 करोड़ की कोठी पर फर्जी दस्तावेजों से कब्जे की कोशिश

चंडीगढ़ के सेक्टर 2 में एक कोठी को हड़पने के लिए फर्जी दस्तावेज बनाने का मामला सामने आया है। तीन महिलाओं पर आरोप है कि उन्होंने झूठे हलफनामे के जरिए संपत्ति पर कब्जा करने की कोशिश की। सतिंदर सिंह धालीवाल ने 1997 में कोठी की हिस्सेदारी खरीदी थी, लेकिन 1999 में महिलाओं ने फर्जी इकरारनामे के आधार पर कोर्ट से डिक्री हासिल की। सुप्रीम कोर्ट ने इस डिक्री को खारिज कर दिया, लेकिन महिलाएं अब भी दस्तावेजों के आधार पर आपत्ति दर्ज करवा रही हैं। मामले की जांच जारी है।
 

चंडीगढ़ में फर्जी दस्तावेजों का मामला

चंडीगढ़ में 20 करोड़ रुपये की कोठी पर कब्जे की साजिश: चंडीगढ़ के सेक्टर 2 में एक कोठी को हड़पने के लिए फर्जी दस्तावेज बनाने का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। आर्थिक अपराध शाखा ने तीन महिलाओं—राजिंदर कौर गिल, परमजीत कौर और कमलदीप कौर के खिलाफ FIR दर्ज की है। शिकायतकर्ता सतिंदर सिंह धालीवाल ने आरोप लगाया है कि इन महिलाओं ने झूठे हलफनामे और इकरारनामे के माध्यम से संपत्ति पर कब्जा करने की कोशिश की। यह मामला संपत्ति विवादों में धोखाधड़ी का एक गंभीर उदाहरण है।


संपत्ति विवाद की शुरुआत:


सतिंदर सिंह धालीवाल ने 1997 में 15 लाख रुपये में कोठी की 50% हिस्सेदारी स्व. बचन कौर के वारिसों से खरीदी थी। उनके पास भुगतान की रसीदें और बैंक ड्राफ्ट हैं। उसी दिन उन्हें कोठी के पूर्वी विंग का कब्जा मिला। पावर ऑफ अटॉर्नी और वसीयत भी उनके नाम पर दर्ज की गईं। लेकिन 1999 में, तीनों महिलाओं ने फर्जी इकरारनामे के आधार पर सिविल कोर्ट से एक्स-पार्टी डिक्री हासिल की, जिसमें दावा किया गया कि बचन कौर ने 1975 में संपत्ति के अधिकार दे दिए थे। यह दस्तावेज कभी भी एस्टेट ऑफिस या कोर्ट में सत्यापित नहीं हुआ।


सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:


सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में इस फर्जी डिक्री को खारिज कर दिया और बचन कौर के वारिसों को 50% हिस्सेदारी का वैध हकदार माना। इसके बावजूद, तीनों महिलाओं ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर एस्टेट ऑफिस में आपत्तियां दर्ज कीं और कोठी में निर्माण कार्य रोकने की कोशिश की। 2 अप्रैल 2025 को एस्टेट ऑफिस ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू किया और संपत्ति को दो बराबर हिस्सों में बांटा गया। यह फैसला संपत्ति विवाद में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।


जब सतिंदर सिंह धालीवाल 2 अप्रैल 2025 को कोठी की सफाई के लिए पहुंचे, तो तीनों महिलाओं ने हंगामा किया और उन्हें अंदर नहीं घुसने दिया गया। धालीवाल ने थाना सेक्टर 3 में शिकायत दर्ज कराई। इसके बाद SDM सेंट्रल ने BNSS की धारा 164 के तहत स्टेटस-को ऑर्डर जारी किया। एसएचओ को कानून-व्यवस्था बनाए रखने का निर्देश दिया गया। मामले की जांच आर्थिक अपराध शाखा को सौंपी गई है, लेकिन अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है।


धोखाधड़ी की जटिल साजिश:


शिकायत में यह भी खुलासा हुआ कि तीनों महिलाओं ने 1998 में एस्टेट ऑफिस में शपथपत्र देकर खुद को साधु सिंह की वारिस बताया, जबकि सिविल कोर्ट में उनके दावे उलट थे। वहां उन्होंने कहा कि साधु सिंह की वसीयत में उन्हें अधिकार नहीं मिले। इन विरोधाभासी बयानों से स्पष्ट है कि फर्जी दस्तावेज बनाकर सरकारी दफ्तरों को गुमराह किया गया। यह धोखाधड़ी का गंभीर मामला है और पुलिस अब इस साजिश के पीछे अन्य लोगों की भूमिका की जांच कर रही है।