चंडीगढ़ में अनाथ बच्चों के लिए शिक्षा में नई उम्मीद, लेकिन क्या मिलेगी आर्थिक सहायता?
चंडीगढ़ में अनाथ बच्चों के लिए शिक्षा की नई पहल
चंडीगढ़ में अनाथ बच्चों की शिक्षा के लिए एक नई उम्मीद जगी है, लेकिन यह पूरी तरह से संतोषजनक नहीं है। चंडीगढ़ शिक्षा विभाग ने इस वर्ष कॉलेजों में अनाथ बच्चों के लिए 2 सीटें आरक्षित करने का निर्णय लिया है। यह एक सकारात्मक कदम प्रतीत होता है, लेकिन असली सवाल यह है कि बिना किसी फीस माफी या वित्तीय सहायता के ये बच्चे अपनी पढ़ाई का खर्च कैसे उठाएंगे?
चाइल्ड केयर संस्थानों में रहने वाले बच्चों का भविष्य
चंडीगढ़ के चाइल्ड केयर संस्थानों में लगभग 150 बच्चे रहते हैं, जिनका भविष्य अब दांव पर है। समाजसेवी और एनजीओ इस मुद्दे पर प्रशासन से स्पष्टीकरण मांग रहे हैं। क्या चंडीगढ़ भी गोवा की तरह अनाथ बच्चों के लिए फीस माफी योजना लागू करेगा? आइए, इस मुद्दे की गहराई में जाते हैं, जो हर संवेदनशील नागरिक को सोचने पर मजबूर कर सकती है!
आरक्षित सीटें: एक स्वागतयोग्य कदम
चंडीगढ़ के कॉलेजों में अनाथ बच्चों के लिए 2 सीटें आरक्षित करना एक सराहनीय कदम है। हालांकि, ज्वाइंट प्रोस्पेक्टस में फीस माफी या वित्तीय सहायता का कोई उल्लेख नहीं है। चंडीगढ़ के आशियाना और स्नेहालय जैसे चाइल्ड केयर संस्थानों में रहने वाले बच्चों को 18 साल की उम्र के बाद आशा किरण, नारी निकेतन या सवेरा केंद्र में भेजा जाता है, जहां वे 21 साल तक रह सकते हैं। इसके बाद उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होना होता है। ऐसे में, यदि शिक्षा विभाग फीस का प्रबंध नहीं करता है, तो आरक्षित सीटों का क्या लाभ?
गोवा का मॉडल: चंडीगढ़ के लिए एक उदाहरण
गोवा ने अनाथ बच्चों की शिक्षा के लिए एक मिसाल पेश की है। वहां की सरकार ने फीस माफी योजना शुरू की है, जिसमें ट्यूशन, हॉस्टल, भोजन, परिवहन और पुस्तकालय जैसे सभी खर्च माफ हैं। यह योजना सामान्य और तकनीकी दोनों प्रकार की पढ़ाई के लिए लागू है। चंडीगढ़ में ऐसी कोई स्पष्ट योजना नहीं है। सामान्य छात्रों के लिए कई स्कॉलरशिप योजनाएं हैं, लेकिन अनाथ बच्चों के लिए कोई विशेष नीति नहीं है। कॉलेज प्रबंधन का कहना है कि वे मौजूदा स्कॉलरशिप्स के तहत मदद करने की कोशिश करेंगे, लेकिन बिना स्पष्ट दिशा-निर्देश के यह कितना प्रभावी होगा, यह एक बड़ा सवाल है।
क्या नीति में बदलाव होगा?
चंडीगढ़ के अनाथ बच्चों को केवल सीटें नहीं, बल्कि आर्थिक सहायता की भी आवश्यकता है। समाजसेवी और एनजीओ की मांग है कि गोवा मॉडल के अनुसार चंडीगढ़ में भी फीस माफी योजना शुरू की जाए। शिक्षा विभाग से उम्मीद है कि वह जल्द ही इस मुद्दे पर स्पष्टीकरण देगा या कोई राहत नीति बनाएगा। यदि ऐसा होता है, तो आशियाना और स्नेहालय जैसे संस्थानों के बच्चे न केवल कॉलेज में दाखिला ले सकेंगे, बल्कि अपने सपनों को भी पूरा कर सकेंगे। यह कदम न केवल इन बच्चों का भविष्य संवारेगा, बल्कि चंडीगढ़ को एक संवेदनशील शहर के रूप में स्थापित करेगा।
कॉलेज फीस: एक बड़ा बोझ
चंडीगढ़ के सरकारी और प्राइवेट कॉलेजों में फीस कोर्स के अनुसार 5,000 से 40,000 रुपये प्रति सेमेस्टर तक होती है। इसके अलावा किताबें, स्टेशनरी, हॉस्टल और अन्य खर्च भी जोड़ें, तो यह राशि अनाथ बच्चों के लिए बहुत अधिक हो जाती है। इन बच्चों के पास न तो परिवार है और न ही कोई आर्थिक सहारा। शिक्षा विभाग ने अभी तक फीस माफी या स्कॉलरशिप के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। तनेजा ने सवाल उठाया, "जब इन बच्चों को 21 साल बाद अपनी जिम्मेदारी खुद उठानी होती है, तो बिना मदद के वे कॉलेज कैसे जाएंगे?" यह सवाल चंडीगढ़ प्रशासन के लिए एक चुनौती है, जिसका उत्तर जल्द चाहिए।