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छछरौली में बाढ़ से किसानों को हुआ बड़ा नुकसान, 500 एकड़ फसल बर्बाद

यमुनानगर के छछरौली में हालिया प्री-मानसून बारिश ने किसानों के लिए गंभीर संकट उत्पन्न कर दिया है। लगभग 500 एकड़ फसल जलमग्न हो गई है, जिससे किसानों की मेहनत बर्बाद हो गई। स्थानीय निवासियों का कहना है कि हर साल ऐसी स्थिति बनती है, लेकिन प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते। जानें इस आपदा के पीछे की पूरी कहानी और प्रशासन की तैयारी पर उठते सवाल।
 

छछरौली बाढ़ से किसानों पर संकट

छछरौली बाढ़ से नुकसान: 500 एकड़ फसल बर्बाद, किसानों की मेहनत गई बेकार: यमुनानगर जिले के छछरौली में बाढ़ ने किसानों के लिए गंभीर संकट उत्पन्न कर दिया है। प्री-मानसून बारिश ने इस क्षेत्र में तबाही मचाई, जिससे सोम और पथराला नदियों का जलस्तर बढ़ गया। इन नदियों का पानी खेतों और गांवों में भर गया, जिससे लगभग 500 एकड़ फसल जलमग्न हो गई।


सड़कें नदियों में तब्दील हो गईं और कई घरों में पानी भर गया। यह स्थिति किसानों और स्थानीय निवासियों के लिए एक गंभीर चुनौती बन गई है। आइए जानते हैं इस आपदा के बारे में विस्तार से।


बारिश ने बिगाड़े हालात


यमुनानगर के छछरौली में प्री-मानसून बारिश ने अप्रत्याशित तबाही मचाई। पहाड़ी क्षेत्रों में हो रही भारी बारिश के कारण सोम और पथराला नदियां अपने किनारे तोड़कर खेतों में घुस गईं। लगभग 500 एकड़ फसल, विशेषकर धान और गन्ना, पूरी तरह बर्बाद हो गया।


किसान सोहन और रजनीश का कहना है कि उन्होंने जून में इतनी बारिश और नुकसान पहले कभी नहीं देखा। नदियों का पानी सड़कों पर भी भर गया, जिससे भारी वाहनों का आवागमन ठप हो गया। लोग जोखिम उठाकर पानी से भरी सड़कों को पार कर रहे हैं।


किसानों की मेहनत पर संकट


इस बाढ़ ने किसानों की मेहनत को बर्बाद कर दिया। धान की रोपाई की तैयारियां प्रभावित हुईं, और गन्ने की फसल को भी भारी नुकसान हुआ। स्थानीय किसानों का कहना है कि हर साल बारिश के मौसम में ऐसी स्थिति बनती है, लेकिन प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता।


ग्रामीणों का गुस्सा इस बात पर है कि उनकी फसलें हर बार बर्बाद होती हैं, लेकिन मदद के नाम पर केवल कागजी योजनाएं बनती हैं। यह स्थिति न केवल उनकी आजीविका को प्रभावित कर रही है, बल्कि उनके भविष्य पर भी सवाल उठा रही है।


प्रशासन की तैयारी पर सवाल


छछरौली बाढ़ ने प्रशासन की तैयारियों पर बड़ा सवाल खड़ा किया है। ग्रामीणों का कहना है कि यह कोई नई समस्या नहीं है।


हर साल बाढ़ और बारिश से फसलें बर्बाद होती हैं, लेकिन प्रशासन केवल आंकड़े जुटाने तक सीमित रहता है।