जलवायु संकट: समुद्र स्तर में वृद्धि से 10 करोड़ इमारतें हो सकती हैं जलमग्न
समुद्र स्तर में वृद्धि का खतरा
जलवायु संकट का सामना: हाल ही में एक अध्ययन में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। यदि जीवाश्म ईंधन के उपयोग को जल्द ही नियंत्रित नहीं किया गया, तो इस सदी के अंत तक दुनिया के तटीय शहरों में 10 करोड़ से अधिक इमारतें जलमग्न हो सकती हैं। यह शोध मैकगिल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है, जो बढ़ते समुद्र स्तर के गंभीर प्रभावों को उजागर करता है, जिससे न केवल इमारतें प्रभावित होंगी, बल्कि लाखों लोगों की जान और अर्थव्यवस्था भी संकट में पड़ सकती है।
यह अध्ययन, जो अर्बन सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित हुआ है, अपने प्रकार का पहला है, जो दर्शाता है कि समुद्र स्तर में वृद्धि अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य एवं दक्षिण अमेरिका के तटीय क्षेत्रों में इमारतों को कैसे प्रभावित कर सकती है। शोधकर्ताओं ने सैटेलाइट डेटा और ऊंचाई रिकॉर्ड का उपयोग करते हुए अनुमान लगाया है कि आने वाले दशकों में कितनी इमारतें जलमग्न हो सकती हैं।
समुद्र स्तर में वृद्धि की गंभीरता
समुद्र का स्तर लगातार बढ़ रहा है
प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर नतालिया गोमेज ने कहा कि समुद्र का बढ़ता स्तर जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते वैश्विक तापमान का एक धीमा लेकिन अपरिहार्य परिणाम है। उन्होंने कहा, 'लोग अक्सर समुद्र स्तर में वृद्धि के बारे में सेंटीमीटर या मीटर में बात करते हैं, लेकिन यदि जीवाश्म ईंधन का उपयोग अनियंत्रित रूप से जारी रहा, तो यह वृद्धि कई मीटर तक हो सकती है, जिससे और भी अधिक नुकसान होगा।'
खतरे की संभावनाएं
थोड़ी सी वृद्धि भी खतरा पैदा कर सकती है
अध्ययन में समुद्र स्तर में 0.5 मीटर से लेकर 20 मीटर तक की वृद्धि के विभिन्न परिदृश्यों का विश्लेषण किया गया। परिणामों से पता चला कि यदि समुद्र का स्तर केवल 0.5 मीटर बढ़ता है, तो लगभग 30 लाख इमारतें जलमग्न हो सकती हैं। यदि समुद्र स्तर 5 मीटर या उससे अधिक बढ़ गया, तो 10 करोड़ से अधिक इमारतें खतरे में पड़ सकती हैं।
विनाशकारी प्रभाव
प्रभाव विनाशकारी हो सकता है
सबसे चिंताजनक यह है कि कई इमारतें घनी आबादी वाले तटीय क्षेत्रों में स्थित हैं। पूरे मोहल्ले, बंदरगाह, रिफाइनरिज और सांस्कृतिक विरासत स्थल जलमग्न हो सकते हैं, जिससे दैनिक जीवन और अर्थव्यवस्था में भारी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
एक अन्य शोधकर्ता, प्रोफेसर जेफ कार्डिले ने कहा, 'यह आश्चर्यजनक है कि समुद्र स्तर में मामूली वृद्धि भी इतनी सारी इमारतों को खतरे में डाल सकती है। इसका प्रभाव विभिन्न तटीय देशों की भौगोलिक संरचना और इमारतों की स्थिति के आधार पर भिन्न होगा।'
भारतीय शहरों पर प्रभाव
जोखिम में भारतीय शहर
भारतीय शहर भी बढ़ते समुद्र स्तर के प्रति संवेदनशील हैं। एक अन्य अध्ययन के अनुसार, यदि उत्सर्जन पर नियंत्रण नहीं लगाया गया, तो मुंबई 830 वर्ग किलोमीटर भूमि खो सकता है, और सदी के अंत तक यह बढ़कर 1,377.13 वर्ग किलोमीटर हो सकता है, जिससे शहर का लगभग 22% हिस्सा जलमग्न हो जाएगा। इसी तरह, चेन्नई 2040 तक अपनी 7.3% भूमि खो सकता है और सदी के अंत तक कुल भूमि बढ़कर 18% हो जाएगी।
वैश्विक प्रभाव
वैश्विक प्रभाव
जलवायु परिवर्तन और समुद्र स्तर में वृद्धि का प्रभाव केवल तट के पास रहने वालों पर नहीं, बल्कि सभी पर पड़ेगा। प्रोफेसर एरिक गैलब्रेथ ने चेतावनी दी कि वैश्विक अर्थव्यवस्था और खाद्य प्रणालियां बंदरगाहों जैसे तटीय बुनियादी ढांचे पर निर्भर हैं। यदि ये प्रभावित होते हैं, तो पूरी दुनिया इसके परिणाम भुगत सकती है।
शोधकर्ताओं ने नीति निर्माताओं को यह समझने में मदद करने के लिए एक इंटरैक्टिव मानचित्र तैयार किया है कि कौन से क्षेत्र सबसे ज्यादा जोखिम में हैं। यह उपकरण तटीय सुरक्षा बुनियादी ढांचे, भूमि उपयोग में बदलाव और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल पुनर्वास रणनीतियों की योजना बनाने में मदद करेगा।
क्या किया जा सकता है?
क्या किया जा सकता है?
शोधकर्ता इस बात पर जोर देते हैं कि हालांकि समुद्र स्तर में मामूली वृद्धि अपरिहार्य है, फिर भी तटीय समुदाय नुकसान को कम करने के लिए तैयारी कर सकते हैं। जितनी जल्दी वे कार्रवाई शुरू करेंगे, बदलती जलवायु में उनके जीवित रहने और फलने-फूलने की संभावना उतनी ही अधिक होगी।