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झारखंड हाईकोर्ट में वकील और न्यायाधीश के बीच विवाद, न्यायपालिका पर हमला

झारखंड हाईकोर्ट में एक वकील ने अदालत के आदेश पर गुस्से में आकर विवाद खड़ा किया, जिससे न्यायपालिका की गरिमा पर सवाल उठ गया। अदालत ने इसे गंभीर कदाचार मानते हुए त्वरित कार्रवाई की सिफारिश की है। बार काउंसिल ने मामले में हस्तक्षेप किया है, और वकील के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की तैयारी की जा रही है। जानें इस विवाद के पीछे की पूरी कहानी और इसके संभावित परिणाम।
 

झारखंड हाईकोर्ट में विवाद

झारखंड समाचार: आमतौर पर उच्च न्यायालयों में वकीलों और न्यायाधीशों के बीच विवाद की घटनाएं कम ही सुनने को मिलती हैं। हाल ही में झारखंड हाईकोर्ट में एक सुनवाई ने इस धारणा को चुनौती दी है। एक भूमि विवाद के मामले में, याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत के आदेश पर गुस्सा होकर ऊंची आवाज में बहस की और कथित तौर पर अदालत को धमकी दी। अदालत ने इसे न्यायिक गरिमा पर हमला मानते हुए त्वरित कार्रवाई की सिफारिश की है.


यह मामला एक भूमि विवाद से संबंधित था, जिसमें याचिकाकर्ताओं पर हत्या की कोशिश जैसे गंभीर आरोप लगे थे। जैसे ही जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी ने अग्रिम जमानत याचिका को खारिज किया, वकील ने ऊंची आवाज में बहस शुरू कर दी। अदालत के आदेश में उल्लेख है कि वकील ने धमकी भरे लहजे में कहा कि वह इस निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। अदालत ने इस व्यवहार को 'हुड़दंग' करार दिया, जिसे कई वरिष्ठ वकीलों ने भी देखा।


न्यायपालिका पर हमला

अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि यह आचरण न्याय के प्रशासन में बाधा डालता है और अदालत की छवि को धूमिल करता है। इसे आपराधिक अवमानना की श्रेणी में रखते हुए हाईकोर्ट ने सख्त कार्रवाई का संकेत दिया। अदालत ने कहा, 'यह केवल एक न्यायाधीश पर नहीं, बल्कि पूरी न्यायपालिका पर हमला है।'


बार काउंसिल की प्रतिक्रिया

जैसे ही स्थिति गंभीर हुई, झारखंड राज्य बार काउंसिल के अध्यक्ष राजेंद्र कृष्ण खुद अदालत पहुंचे और मामले को शांत करने का प्रयास किया। उन्होंने हाईकोर्ट से अनुरोध किया कि फिलहाल आपराधिक अवमानना की कार्रवाई शुरू न की जाए। अदालत ने उनकी बात मानते हुए आपराधिक कार्रवाई को स्थगित कर दिया और मामले को बार काउंसिल को सौंप दिया।


वकील के खिलाफ कार्रवाई की तैयारी

बार काउंसिल के अध्यक्ष ने पुष्टि की कि यह मामला गंभीर कदाचार का है और अनुशासन समिति इसकी जांच करेगी। यदि वकील दोषी पाए गए, तो उन्हें चेतावनी, कुछ समय के लिए वकालत पर रोक, या यहां तक कि नामांकन रद्द करने जैसी सजा मिल सकती है। राजेंद्र कृष्ण ने कहा, 'वकील अदालत के अधिकारी होते हैं, इसलिए उनकी गरिमा बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है।'