दिल्ली में बिजली दरों में वृद्धि: सुप्रीम कोर्ट ने दी हरी झंडी, लेकिन कुछ शर्तें भी हैं
बिजली बिल में वृद्धि की अनुमति
बिजली बिल में वृद्धि: दिल्ली में बिजली की दरों में वृद्धि को सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मंजूरी दे दी है, लेकिन इसके साथ कुछ शर्तें भी रखी गई हैं। अदालत ने यह स्पष्ट किया है कि दरों में बढ़ोतरी से पहले यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि यह उचित और किफायती हो। इसके अलावा, दिल्ली बिजली नियामक आयोग (DERC) को एक योजना बनाने का निर्देश दिया गया है, ताकि यह तय किया जा सके कि बिजली की दरें कब, कैसे और कितनी बढ़ाई जाएं। यह निर्णय बिजली वितरण कंपनियों के लंबित भुगतानों के मुद्दे पर चल रहे मुकदमे के दौरान लिया गया है। इस फैसले का प्रभाव दिल्ली के अलावा अन्य राज्यों में भी बिजली की दरों पर पड़ सकता है, क्योंकि कई राज्यों में बिजली कंपनियों के बकाए हैं।
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, बिजली की दरों में वृद्धि सभी प्रकार के उपभोक्ताओं पर लागू होगी, जिसमें व्यक्तिगत, आवासीय, वाणिज्यिक और औद्योगिक उपभोक्ता शामिल हैं। अदालत ने कहा है कि दरों में बढ़ोतरी तभी की जा सकती है जब यह उचित और किफायती हो, और यह दिल्ली बिजली नियामक आयोग द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक न हो। यह मुकदमा दिल्ली की प्रमुख बिजली वितरण कंपनियों बीएसईएस यमुना पावर, बीएसईएस राजधानी और टाटा पावर दिल्ली डिस्ट्रीब्यूशन लिमिटेड द्वारा दायर किया गया था। सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का दायरा बढ़ाते हुए अन्य राज्यों को भी नोटिस जारी किया, जहां बिजली वितरण कंपनियों के बकाए जमा हो चुके हैं।
नियामक परिसंपत्तियों के लिए निर्देश
नियामक परिसंपत्तियों के लिए निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने बिजली कंपनियों को लंबित नियामक परिसंपत्तियों को समाप्त करने के लिए चार साल का समय दिया है। नियामक परिसंपत्तियां उस घाटे को दर्शाती हैं जो बिजली वितरण कंपनियों को बिजली खरीदने और वितरण करने में उठाना पड़ता है, जबकि उपभोक्ताओं से निर्धारित टैरिफ के मुकाबले उनसे अधिक कीमत वसूली जाती है। इन लंबित बकाए को समाप्त करने का निर्देश देने से राज्यों में बिजली की दरों में वृद्धि हो सकती है। अदालत ने यह भी कहा कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बिजली कंपनियों के बकाए जमा होने से रोका जाए। अदालत ने टिप्पणी की, 'लंबे समय से लटके हुए बकायों में अनुपातहीन बढ़ोतरी अंततः उपभोक्ता पर बोझ डालती है।'
बिजली दरों में वृद्धि का प्रभाव
बिजली दरों में वृद्धि का असर
यदि नियामक परिसंपत्तियां समय पर समाप्त नहीं होती हैं, तो इसका प्रभाव उपभोक्ताओं पर पड़ सकता है। विशेष रूप से उन राज्यों में जहां ये बकाया दशकों से जमा हैं, जैसे कि दिल्ली में 17 साल से बकाया चल रहा है, जो अब बढ़कर 20,000 करोड़ रुपये हो चुका है। तमिलनाडु में यह राशि 87,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है, जिसका भुगतान अब किया जाना है। ऐसे में इन बकायों को खत्म करने के लिए बिजली की दरों में बढ़ोतरी की संभावना जताई जा रही है।
न्यायिक टिप्पणी
न्यायिक टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य विद्युत नियामक आयोगों और एपीटीईएल (Appellate Tribunal for Electricity) की कड़ी आलोचना की। न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति अतुल एस चंदुरकर की पीठ ने कहा कि 'आयोग का अकुशल और अनुचित तरीके से काम करना और फैसले लेने में विफलता रेगुलटेरी कमीशन की असफलता का कारण बन सकता है।' अदालत ने कहा, 'राज्य विद्युत आयोगों का काम इस प्रकार से हो कि उपभोक्ताओं को अनावश्यक बोझ न झेलना पड़े और बकायों का निस्तारण समय पर हो।'