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दिल्ली हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: आत्मनिर्भर जीवनसाथी को नहीं मिलेगा गुजारा भत्ता

दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि यदि जीवनसाथी आर्थिक रूप से सक्षम है, तो उसे गुजारा भत्ता नहीं दिया जा सकता। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि स्थायी गुजारा भत्ता सामाजिक न्याय का एक साधन है, न कि सक्षम व्यक्तियों को अमीर बनाने का तरीका। इस मामले में पत्नी रेलवे में अधिकारी हैं और उनकी आय पर्याप्त है। जानें इस फैसले के पीछे की पूरी कहानी और इसके प्रभाव।
 

दिल्ली हाई कोर्ट का निर्णय

नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने तलाक के एक मामले में महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि यदि जीवनसाथी आर्थिक रूप से सक्षम और आत्मनिर्भर है, तो उसे गुजारा भत्ता नहीं दिया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि स्थायी गुजारा भत्ता, जिसे एलीमनी भी कहा जाता है, सामाजिक न्याय का एक साधन है, और इसका उद्देश्य सक्षम व्यक्तियों को अमीर बनाना या उनकी आर्थिक स्थिति को समान करना नहीं है।


जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा कि गुजारा भत्ता मांगने वाले को यह साबित करना होगा कि उसे वास्तव में आर्थिक सहायता की आवश्यकता है। इस मामले में पत्नी रेलवे में ग्रुप एक अधिकारी हैं और उनकी आय पर्याप्त है। उच्च न्यायालय ने रेलवे में कार्यरत महिला द्वारा स्थायी गुजारा भत्ता की मांग को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। उल्लेखनीय है कि महिला ने पति के खिलाफ क्रूरता के आधार पर तलाक लिया था।


इस मामले में फैमिली कोर्ट ने भी पत्नी को स्थायी गुजारा भत्ता देने से मना कर दिया था, और उच्च न्यायालय ने उस निर्णय को सही ठहराया। पति एक वकील हैं और पत्नी रेलवे की अधिकारी हैं। दोनों की यह दूसरी शादी थी, जो जनवरी 2010 में हुई थी, और 14 महीनों बाद वे अलग हो गए। पत्नी ने तलाक के लिए 50 लाख रुपए की मांग की थी। उच्च न्यायालय ने पाया कि फैमिली कोर्ट का निष्कर्ष कि पत्नी की मांग आर्थिक दृष्टिकोण से सही था, उचित और तर्कसंगत था। इसके बाद, उच्च न्यायालय ने स्थायी गुजारा भत्ता देने से इनकार कर दिया।