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दूधारू पशुओं में बाँझपन: प्रकार, कारण और पशुपालन विभाग की सलाह

दूधारू पशुओं में बाँझपन एक गंभीर समस्या है, जो न केवल पशुओं की उत्पादकता को प्रभावित करती है, बल्कि किसानों की आय पर भी असर डालती है। बिहार सरकार का पशुपालन विभाग इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए पशुपालकों को जागरूक करने के लिए प्रयास कर रहा है। इस लेख में, हम बाँझपन के विभिन्न प्रकार, इसके कारण और पशुपालन विभाग की सलाह पर चर्चा करेंगे। जानें कैसे सही पोषण और संकेतों की पहचान से पशुओं की उत्पादकता में सुधार किया जा सकता है।
 

दूधारू पशुओं में बाँझपन की समस्या

दूधारू पशुओं में बाँझपन: जानें इसके प्रकार, कारण और पशुपालन विभाग की सलाह: दूध देने वाले जानवरों में बाँझपन एक गंभीर समस्या बनती जा रही है, जिससे न केवल पशुओं की उत्पादकता में कमी आ रही है, बल्कि किसानों की आय पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इस मुद्दे को ध्यान में रखते हुए, बिहार सरकार का पशुपालन विभाग पशुपालकों को जागरूक करने के लिए कदम उठा रहा है।


बाँझपन को एक साधारण बीमारी नहीं, बल्कि एक जटिल स्थिति माना जाता है। विभाग के अनुसार, यह समस्या कई कारणों से उत्पन्न होती है और इसके तीन मुख्य प्रकार हैं: प्राइमरी, सेकेंडरी और फंक्शनल इंफर्टिलिटी।


बाँझपन के प्रकार

प्राइमरी बाँझपन: जब कोई मादा पशु यौन परिपक्वता प्राप्त कर लेती है लेकिन गर्भधारण नहीं कर पाती, तो इसे प्राथमिक बाँझपन कहा जाता है।


सेकेंडरी बाँझपन: इसमें पशु पहले गर्भवती हो चुका होता है, लेकिन अब गर्भधारण में असमर्थ हो जाता है।


फंक्शनल बाँझपन: यह हार्मोनल असंतुलन के कारण होता है, जिसमें 'साइलेंट हीट' जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इस स्थिति में पशु हीट में होता है, लेकिन कोई लक्षण नहीं दिखाई देते।


पोषण की कमी और बाँझपन का संबंध

पशुओं की प्रजनन क्षमता उनके पोषण से सीधे जुड़ी होती है। जब उनके आहार में फॉस्फोरस, आयोडीन, कैल्शियम और जिंक जैसे आवश्यक खनिजों की कमी होती है, तो बाँझपन की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा, ऊर्जा युक्त चारे की कमी भी प्रजनन में बाधा डाल सकती है।


पशुपालन विभाग का उद्देश्य है कि किसानों को इन संकेतों की पहचान और समाधान के बारे में जानकारी दी जाए, ताकि पशुओं की उत्पादकता में सुधार हो सके और पशुपालन को अधिक लाभकारी बनाया जा सके।