धान की फसल में खैरा रोग: लक्षण, कारण और बचाव के उपाय
धान में खैरा रोग का महत्व
धान की फसल में खैरा रोग: लक्षण, कारण और बचाव के उपाय: यह जानकारी किसानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि खैरा रोग फसल को पूरी तरह से नष्ट कर सकता है। कृषि विशेषज्ञ शिव शंकर वर्मा के अनुसार, यह रोग मिट्टी में जिंक की कमी के कारण उत्पन्न होता है। जब खेत की मिट्टी में जिंक की मात्रा घट जाती है, तो धान की फसल पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
मिट्टी की गुणवत्ता और फसल पर प्रभाव
इसके अतिरिक्त, जब मिट्टी में कैल्शियम और अल्कलाइन तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है, तो जिंक की उपलब्धता और भी कम हो जाती है। लगातार एक ही खेत में धान, मक्का और गन्ना जैसी उच्च तीव्रता वाली फसलों की खेती करने से मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट आती है और रोग फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
खैरा रोग के लक्षण
खैरा रोग के लक्षण पहचानें: इस रोग के लक्षण प्रारंभ में पत्तियों पर हल्के पीले धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं। धीरे-धीरे ये धब्बे कत्थई रंग में परिवर्तित हो जाते हैं। पौधा बौना हो जाता है और उसकी जड़ें भी कत्थई रंग की हो जाती हैं। यह संकेत है कि फसल गंभीर रूप से प्रभावित हो चुकी है।
मिट्टी परीक्षण और उपचार
ऐसे में किसानों को तुरंत मिट्टी का परीक्षण कराना चाहिए ताकि पोषक तत्वों की कमी का पता चल सके। समय पर पहचान और उपचार से फसल को बचाया जा सकता है।
बचाव के उपाय
बचाव के आसान और असरदार उपाय: शिव शंकर वर्मा के अनुसार, खैरा रोग के उपचार के लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करें और प्रति हेक्टेयर 25 किलो जिंक सल्फेट मिट्टी में मिलाएं। इसके बाद 0.5% जिंक सल्फेट और 0.2% बुझा चूना को पानी में घोलकर हर 10 दिन में तीन बार छिड़काव करें।
यदि चूना उपलब्ध न हो, तो 2% यूरिया का भी उपयोग किया जा सकता है। यह उपाय जिंक की कमी को पूरा करता है और फसल को खैरा रोग से बचाता है। साथ ही, किसानों को सलाह दी जाती है कि वे समय-समय पर मिट्टी की जांच कराते रहें ताकि पोषक तत्वों की कमी का पता चल सके।