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नई तकनीक से रीढ़ की चोट का इलाज संभव, वैज्ञानिकों ने किया बड़ा खुलासा

ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक विकसित की है, जो रीढ़ की हड्डी में चोट के बाद चलने-फिरने की क्षमता को पुनर्स्थापित कर सकती है। यह उपकरण विद्युत प्रवाह के माध्यम से घाव भरने में मदद करता है। चूहों पर किए गए परीक्षणों में इस तकनीक ने सकारात्मक परिणाम दिखाए हैं। जानें इस खोज के पीछे की कहानी और इसके भविष्य की संभावनाएं।
 

ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों की नई खोज

नई दिल्ली: ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं की एक टीम ने एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण विकसित किया है, जिसे शरीर में इम्प्लांट किया जा सकता है। इस उपकरण की सहायता से रीढ़ की हड्डी में चोट के बाद चलने-फिरने की क्षमता को पुनर्स्थापित किया जा सकता है। यह अध्ययन जानवरों पर किया गया है, जिससे इंसानों और उनके पालतू जानवरों के लिए उपचार की संभावनाएं बढ़ी हैं।


रीढ़ की चोट का गंभीर प्रभाव

रीढ़ की हड्डी में चोट लगने पर इसका उपचार अभी तक संभव नहीं है, और यह व्यक्ति के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। न्यूजीलैंड की ऑकलैंड यूनिवर्सिटी के वाइपापा तौमाता राउ में किए गए परीक्षण ने एक प्रभावी उपचार की उम्मीद जगाई है।


उपकरण का कार्यप्रणाली

ऑकलैंड विश्वविद्यालय के फार्मेसी स्कूल के वरिष्ठ अनुसंधान फेलो, डॉ. ब्रूस हारलैंड ने बताया कि जैसे त्वचा पर घाव अपने आप भर जाता है, वैसे रीढ़ की हड्डी खुद को ठीक नहीं कर पाती, जिससे इसकी चोट गंभीर हो जाती है।


डॉ. हारलैंड ने नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित अपने शोध में बताया कि उनकी टीम ने एक पतला उपकरण विकसित किया है, जिसे सीधे रीढ़ की हड्डी पर लगाया जाता है। यह उपकरण वहां हल्का और नियंत्रित विद्युत प्रवाह भेजता है, जिससे घाव भरने में सहायता मिलती है।


चूहों पर परीक्षण के परिणाम

यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ फार्मेसी के प्रोफेसर डैरेन स्विरस्किस ने कहा कि इसका उद्देश्य रीढ़ की चोट से प्रभावित कार्यों को पुनः प्रारंभ करना है। चूहों पर इस तकनीक का परीक्षण किया गया, जिसमें विद्युत स्टिमुलेशन से उपचार प्राप्त करने वाले चूहों ने बेहतर चलने-फिरने की क्षमता दिखाई।


चार हफ्तों के बाद, जिन चूहों को विद्युत स्टिमुलेशन दिया गया, उनमें चलने-फिरने की क्षमता उन चूहों की तुलना में बेहतर थी, जिन्हें यह उपचार नहीं मिला। 12 हफ्तों की स्टडी में यह भी देखा गया कि ये चूहे हल्के स्पर्श पर भी तेजी से प्रतिक्रिया देने लगे।


भविष्य की संभावनाएं

डॉ. हारलैंड ने कहा कि इस उपचार ने चलने-फिरने और महसूस करने में सुधार किया है, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे रीढ़ की हड्डी में कोई सूजन या नुकसान नहीं हुआ, जिससे यह सुरक्षित साबित हुआ।


चाल्मर्स यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी की प्रोफेसर मारिया एस्पलंड ने कहा कि भविष्य में इस तकनीक को एक मेडिकल डिवाइस के रूप में विकसित करने की योजना है, जिससे गंभीर रीढ़ की चोट वाले लोगों को लाभ मिल सके। वैज्ञानिक अब इस उपचार की ताकत, बारंबारता और अवधि में सुधार पर काम कर रहे हैं।