नेपाल में युवा प्रदर्शनकारियों का आंदोलन: राजनीतिक बदलाव की मांग
नेपाल की राजनीतिक स्थिति में उथल-पुथल
नेपाल की राजनीति में हालात बेहद तनावपूर्ण हैं। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को सत्ता से हटाने में सफल होने के बावजूद, युवा प्रदर्शनकारी सड़कों पर डटे हुए हैं। यह आंदोलन अब केवल एक नेता को हटाने तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह पूरे राजनीतिक ढांचे में बदलाव की मांग कर रहा है। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि दशकों से चल रहे भ्रष्टाचार की जांच की जाए और देश के लिए एक नया संविधान तैयार किया जाए।यह आंदोलन शुरू में सोशल मीडिया पर प्रतिबंधों के खिलाफ था, लेकिन अब यह एक व्यापक राजनीतिक परिवर्तन की मांग में बदल गया है। प्रदर्शनकारियों ने अपने पहले लक्ष्य, यानी प्रधानमंत्री ओली का इस्तीफा, हासिल कर लिया है, फिर भी वे पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने एक व्यापक सुधार एजेंडा पेश किया है।
आंदोलन के प्रतिनिधियों ने कहा, "यह आंदोलन किसी पार्टी या व्यक्तिगत स्वार्थ से परे है - यह हमारे देश के भविष्य के लिए हमारी पीढ़ी का दृष्टिकोण है। सच्ची शांति एक नए राजनीतिक ढांचे की स्थापना से ही संभव है।"
प्रदर्शनकारियों ने यह भी घोषणा की है कि विरोध प्रदर्शनों में मारे गए सभी लोगों को आधिकारिक तौर पर शहीद का दर्जा दिया जाएगा और उनके परिवारों को सरकारी मान्यता और मुआवजा मिलेगा।
युवाओं की प्रमुख मांगें
युवाओं ने देश को सही दिशा में लाने के लिए कई महत्वपूर्ण मांगें रखी हैं:
- संसद भंग हो: उनका कहना है कि मौजूदा संसद जनता का विश्वास खो चुकी है, इसलिए इसे तुरंत भंग किया जाना चाहिए।
- नया संविधान: या तो मौजूदा संविधान में बड़े बदलाव किए जाएं, या फिर नागरिकों, विशेषज्ञों और युवाओं की भागीदारी से इसे पूरी तरह से फिर से लिखा जाए।
- नए चुनाव: एक पारदर्शी और स्वतंत्र प्रक्रिया के तहत देश में नए सिरे से चुनाव कराए जाएं।
- भ्रष्टाचार की जांच: पिछले तीस वर्षों में नेताओं द्वारा जमा की गई अवैध संपत्तियों की गहन जांच हो और ऐसी सभी संपत्तियों को जब्त कर राष्ट्रीयकरण किया जाए।
- पांच संस्थानों का पुनर्गठन: शिक्षा, स्वास्थ्य, न्याय, सुरक्षा और संचार, इन पांच प्रमुख संस्थानों को पूरी तरह से फिर से बनाया जाए।
सुरक्षा स्थिति और प्रदर्शन
प्रधानमंत्री ओली के देश छोड़ने और सरकार गिरने के बावजूद, तनाव बना हुआ है। काठमांडू और अन्य प्रमुख शहरों में बुधवार सुबह से ही सेना तैनात है। हाल ही में हुए हिंसक प्रदर्शनों के दौरान प्रदर्शनकारी संसद भवनों में घुस गए और आगजनी की। इसके बाद, सेना ने राष्ट्रीय सुरक्षा का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया है।
सैन्य अधिकारियों ने चिंता व्यक्त की है कि कुछ समूह "इस चुनौतीपूर्ण परिस्थिति का फायदा उठाकर" नागरिकों और सार्वजनिक संपत्ति को "काफी नुकसान" पहुंचा रहे हैं। इन सबके बावजूद, प्रदर्शनकारियों को उम्मीद है कि राष्ट्रपति और सेना का नेतृत्व उनके सुधार प्रस्तावों का समर्थन करेगा।