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पंजाब सरकार के बाढ़ मुआवज़े पर किसानों की नाराज़गी

पंजाब सरकार ने बाढ़ से प्रभावित किसानों के लिए 20,000 रुपये प्रति एकड़ मुआवज़ा घोषित किया है, लेकिन किसान इसे अपर्याप्त मानते हैं। भारतीय किसान यूनियन के नेता हरिंदर सिंह लाखोवाल ने 50,000 रुपये की मांग की है। किसानों का कहना है कि सरकार की घोषणाएँ केवल एक मज़ाक हैं, क्योंकि पिछले मुआवज़े अभी तक नहीं मिले हैं। जानें इस मुद्दे पर किसानों की क्या राय है और सरकार की योजनाएँ क्या हैं।
 

मुख्यमंत्री भगवंत मान की घोषणाएँ विवाद में

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व में हुई कैबिनेट बैठक में बाढ़ से हुए नुकसान के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं। इनमें किसानों को 20,000 रुपये प्रति एकड़ मुआवज़ा देने की घोषणा की गई है। हालांकि, यह निर्णय किसानों के बीच असंतोष का कारण बन गया है। किसानों ने इस मुआवज़े को हास्यास्पद बताते हुए 50,000 रुपये की मांग की है।


भारतीय किसान यूनियन लाखोवाल के अध्यक्ष हरिंदर सिंह लाखोवाल ने कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा घोषित सहायता राशि, जिसमें मृतकों के परिवारों के लिए 4 लाख रुपये और बाढ़ प्रभावित फसलों के लिए 20,000 रुपये प्रति एकड़ शामिल हैं, अपर्याप्त है। उन्होंने न्यूनतम 70,000 रुपये प्रति एकड़ मुआवज़ा देने की आवश्यकता पर जोर दिया, यह कहते हुए कि 35,000 रुपये छह महीने के फसल अनुबंध के लिए और 30,000 रुपये फसल बोने पर खर्च होते हैं।


किसानों ने यह भी कहा कि जैसे हमारे सैनिक देश की रक्षा के लिए शहीद होते हैं, वैसे ही किसानों के लिए भी अधिकतम मुआवज़े की आवश्यकता है।


दूसरी ओर, दोआबा किसान समिति के अध्यक्ष जंगवीर सिंह चौहान और अन्य सदस्यों ने भी मुख्यमंत्री की घोषणाओं को मज़ाक बताया। उन्होंने कहा कि पंजाब सरकार ने 2023 में भी फसल मुआवज़े की घोषणा की थी, जो अब तक नहीं मिली है। अब 2025 में आई बाढ़ के संदर्भ में भी किसानों को यह केवल एक झूठा मज़ाक लग रहा है।


नेताओं ने यह भी बताया कि सरकार ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में पानी से जमा रेत या मिट्टी को 31 दिसंबर तक बिना परमिट के किसानों को बेचने या उठाने की अनुमति नहीं दी है। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि जब किसानों के खेतों की सफाई चार से पांच महीने तक नहीं होगी, तो इस घोषणा का क्या लाभ होगा।