पीओके में जनता का विद्रोह: पाकिस्तान की सेना पर भारी पड़ रही है स्थानीय आबादी
पीओके में जनता का संघर्ष
पाकिस्तान द्वारा जबरन कब्जाए गए पीओके से ऐसी तस्वीरें सामने आई हैं, जिनका भारत को 78 वर्षों से इंतजार था। 78 साल पहले पाकिस्तान ने इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था। अब, पीओके की जनता ने इस इलाके को पाकिस्तान के नियंत्रण से मुक्त कराने के लिए एक बड़ा आंदोलन शुरू कर दिया है। हाल ही में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि पीओके एक दिन भारत में शामिल होगा, जिसे पीओके के लोगों ने गंभीरता से लिया है। उन्होंने इस क्षेत्र को भारत का बताते हुए पाकिस्तानी सेना की गाड़ियों और कंटेनरों को नदी में फेंक दिया। यदि पीओके की जनता इसी तरह से लड़ती रही, तो उन्हें जल्द ही आजादी मिल सकती है.
पाकिस्तानी सेना की हार
जब पाकिस्तान की सेना और पुलिस पीओके की जनता पर हमला करने आई, तो एक अप्रत्याशित घटना घटी। 250 से अधिक पाकिस्तानी सैनिक और पुलिसकर्मी पीओके की जनता द्वारा बंधक बना लिए गए। पाकिस्तानी पुलिस ने पीओके में आत्मसमर्पण कर दिया। पुलिसकर्मी, जो पीओके के लोगों को लाठी-डंडों से मारने आए थे, को कुछ ही मिनटों में सड़कों पर गिरा दिया गया। पीओके की जनता ने पाकिस्तान की सेना और पुलिस को नजरबंद कर लिया।
धरना-प्रदर्शन की लहर
हालिया रिपोर्टों के अनुसार, पीओके के रावलकोट, हजीरा, अब्बासपुर, खाई गाला, पनिओला और त्राखेल में हजारों लोग धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। पाकिस्तानी मीडिया ने अराजकता के वीडियो प्रसारित किए हैं, जिनमें कुछ लोग हवा में गोलियाँ चलाते हुए दिखाई दे रहे हैं। मुस्लिम कॉन्फ्रेंस समूह पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ चलाईं। पीओके के नागरिक पाकिस्तानी राजनेताओं के अभिजात्य रवैये का विरोध कर रहे हैं, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे हैं.
विदेशों में भी विरोध
जम्मू-कश्मीर संयुक्त जन कार्रवाई समिति के नेता शौकत नवाज मीर ने 1 अक्टूबर को पीओके के कई प्रमुख कस्बों और जिलों से मुजफ्फराबाद की ओर एक लंबा मार्च निकालने की घोषणा की है। यह विरोध प्रदर्शन केवल मुज़फ़्फ़राबाद या पीओके तक सीमित नहीं है, बल्कि विदेशों में भी इसकी झलक देखने को मिल रही है। ब्रिटिश कश्मीरी भी इस आंदोलन में शामिल हो गए हैं और लंदन में पाकिस्तानी उच्चायोग और ब्रैडफ़ोर्ड स्थित वाणिज्य दूतावास के बाहर प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी पाकिस्तान सरकार से हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं और 38 मांगों को स्वीकार करने की अपील कर रहे हैं, जिसमें मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाना भी शामिल है।