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प्रधानमंत्री मोदी की अर्थशास्त्रियों से बैठक, केंद्रीय बजट 2026-27 की तैयारी शुरू

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्रीय बजट 2026-27 की तैयारी के लिए देश के प्रमुख अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों के साथ बैठक करने का निर्णय लिया है। इस बैठक का उद्देश्य मौजूदा आर्थिक स्थिति पर विशेषज्ञों की राय प्राप्त करना है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को बजट पेश करने की योजना बना रही हैं। इस बीच, कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री ने बजट के लिए चार महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। जानें इस बैठक के बारे में और क्या महत्वपूर्ण बातें सामने आई हैं।
 

बजट से पहले की महत्वपूर्ण बैठक

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को देश के प्रमुख अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक करने जा रहे हैं। इस बैठक का मुख्य उद्देश्य आगामी केंद्रीय बजट 2026-27 के लिए उनके विचार और सुझाव प्राप्त करना है।


यह बैठक बजट से पहले की चर्चाओं का हिस्सा है, जिसमें नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी, सीईओ बी.वी.आर. सुब्रह्मण्यम और अन्य सदस्य भी शामिल हो सकते हैं।


इस बैठक का लक्ष्य देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति पर विशेषज्ञों की राय जानना है, ताकि सरकार सही निर्णय ले सके।


केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को बजट पेश करने की योजना बना रही हैं। यह बजट ऐसे समय में आएगा जब वैश्विक स्तर पर भू-राजनीतिक तनाव और अमेरिका के टैरिफ जैसे मुद्दे मौजूद हैं।


बजट की तैयारी के लिए वित्त मंत्री पहले ही कई अर्थशास्त्रियों, ट्रेड यूनियनों और श्रमिक संगठनों के साथ चर्चा कर चुकी हैं। ये बैठकें हर साल बजट से पहले आयोजित की जाती हैं।


हाल के दिनों में सरकार ने बैंकिंग, होटल, आईटी और स्टार्टअप्स जैसे क्षेत्रों के प्रतिनिधियों से भी बातचीत की है। इसके अलावा कृषि, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में विकास को बढ़ावा देने पर भी चर्चा की गई है।


इस बीच, कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) ने बजट 2026-27 के लिए चार प्रमुख सुझाव दिए हैं। इनमें कर्ज को नियंत्रित रखना, सरकारी खर्च में पारदर्शिता, अधिक राजस्व जुटाना और खर्च को सही तरीके से करना शामिल है।


सीआईआई के अनुसार, सरकार का लक्ष्य है कि वित्त वर्ष 2031 तक देश का कर्ज जीडीपी के लगभग 50 प्रतिशत तक रखा जाए।


संगठन का कहना है कि यदि वित्त वर्ष 2027 में केंद्र सरकार का कर्ज जीडीपी का लगभग 54.5 प्रतिशत और घाटा 4.2 प्रतिशत के आसपास रखा जाए, तो इससे अर्थव्यवस्था पर विश्वास बना रहेगा और विकास को भी समर्थन मिलेगा।