बंदी छोड़ दिवस: गुरु हरगोबिंद साहिब की प्रेरणादायक कहानी
बंदी छोड़ दिवस का महत्व
बंदी छोड़ दिवस आज 21 अक्टूबर: गुरु हरगोबिंद साहिब की कहानी नई दिल्ली | सिख समुदाय का एक महत्वपूर्ण त्योहार 'बंदी छोड़ दिवस' दीपावली के आस-पास धूमधाम से मनाया जाता है। यह दिन सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद साहिब जी की ग्वालियर जेल से रिहाई और उनके साथ 52 हिंदू राजाओं की स्वतंत्रता की याद में मनाया जाता है।
इस अवसर पर गुरुद्वारों में दीप जलाए जाते हैं, आतिशबाजी होती है और नगर कीर्तन का आयोजन किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस त्योहार की कहानी कितनी प्रेरणादायक है? आइए, इसे सरल भाषा में समझते हैं।
गुरु हरगोबिंद साहिब की रिहाई की कहानी
सिख धर्म के बढ़ते प्रभाव को देखकर मुगल सम्राट जहांगीर ने गुरु हरगोबिंद साहिब जी को धोखे से ग्वालियर के किले में कैद कर लिया था, जहां पहले से ही 52 हिंदू राजा बंदी थे। कहा जाता है कि गुरु जी को कैद करने के बाद जहांगीर गंभीर रूप से बीमार पड़ गया।
उसके काजी ने सलाह दी कि गुरु जी को रिहा करने से उसकी तबीयत में सुधार हो सकता है। जहांगीर ने तुरंत गुरु जी को छोड़ने का आदेश दिया, लेकिन गुरु हरगोबिंद साहिब ने अकेले रिहा होने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि वे तभी जेल से बाहर जाएंगे, जब उनके साथ कैद 52 राजा भी आजाद होंगे।
जहांगीर की शर्त और गुरु जी की चतुराई
जहांगीर ने चालाकी से शर्त रखी कि केवल वही राजा रिहा होंगे, जो गुरु जी के कपड़े या शरीर को पकड़कर बाहर निकल सकें।
उसकी सोच थी कि ज्यादा राजा ऐसा नहीं कर पाएंगे। लेकिन गुरु जी ने एक विशेष जामा (कुरता) सिलवाया, जिसमें 52 कलियां थीं। हर राजा ने एक-एक कली पकड़ी और इस तरह सभी 52 राजा गुरु जी के साथ आजाद हो गए। इस घटना के बाद गुरु हरगोबिंद साहिब को 'बंदी छोड़ दाता' कहा जाने लगा।
अमृतसर में भव्य स्वागत
जब गुरु जी अमृतसर लौटे, तो हरमंदिर साहिब में दीप जलाकर उनका जोरदार स्वागत किया गया। बाद में इस दिन को 'बंदी छोड़ दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया।
इस दिन सिख समुदाय नगर कीर्तन, अखंड पाठ और कीर्तन के साथ उत्सव मनाता है। हरमंदिर साहिब और उसके आसपास का क्षेत्र हजारों झिलमिलाती रोशनियों से सजाया जाता है। आतिशबाजी का शानदार प्रदर्शन भी होता है। सिख परिवार इस अवसर पर गुरुद्वारों में जाते हैं और एक-दूसरे के साथ समय बिताते हैं।
बंदी छोड़ दिवस का महत्व
यह त्योहार सिख समुदाय के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह न केवल गुरु हरगोबिंद साहिब जी की बहादुरी और दयालुता की याद दिलाता है, बल्कि दूसरों की मदद करने का संदेश भी देता है। 20वीं सदी में कुछ नेताओं ने इसे दीपावली के साथ जोड़ दिया, जिससे इसकी लोकप्रियता और बढ़ गई।