बिहार में मतदाता सूची का पुनरीक्षण: चुनावी समीकरण में बदलाव
बिहार में मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण
पटना: मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR), जो 4 नवंबर से पूरे देश में आरंभ हुआ है, बिहार विधानसभा चुनावों से पहले राज्य की राजनीतिक स्थिति में नई हलचल पैदा कर रहा है। चुनाव आयोग द्वारा किए गए इस पुनरीक्षण में लगभग 47 लाख मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं, जो कुल मतदाता संख्या का लगभग 5.9% है।
चुनाव परिणामों पर प्रभाव
विश्लेषकों का मानना है कि यह परिवर्तन आगामी 6 और 11 नवंबर को होने वाले मतदान के परिणामों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है, क्योंकि बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से 52 सीटों पर पिछले चुनाव में जीत का अंतर 5,000 मतों से कम था। वहीं, 10 सीटों पर यह अंतर 500 वोटों से भी नीचे था।
प्रशांत किशोर का प्रभाव
प्रशांत किशोर का पदार्पण और वोटों का समीकरण
इस बार प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के मैदान में आने से चुनावी मुकाबला और भी दिलचस्प हो गया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि किशोर कुछ सीटों पर 'किंगमेकर' साबित हो सकते हैं, जिससे मुख्य प्रतिद्वंद्वी गठबंधनों एनडीए और महागठबंधन के लिए समीकरण और जटिल हो जाएंगे।
2020 के विधानसभा चुनाव में राजद 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, जबकि भाजपा ने 74 सीटें जीती थीं। फिर भी, एनडीए 125 सीटों के साथ सत्ता में लौटा था। इसलिए, इस बार मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर हुए संशोधन का प्रभाव निर्णायक हो सकता है।
सीमांचल क्षेत्र में विवाद
सीमांचल के मुसलमानों का आरोप- 'मताधिकार छीना गया'
सबसे अधिक विवाद मुस्लिम बहुल सीमांचल क्षेत्र में देखा जा रहा है। किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और अररिया जिलों में मतदाताओं के नाम हटाने की दर 7.7% तक पहुँच गई है, जो राज्य में सबसे अधिक है।
इन जिलों में लगभग 48% मुस्लिम आबादी है, जो परंपरागत रूप से राजद-कांग्रेस गठबंधन को वोट देती रही है। स्थानीय समुदायों ने आरोप लगाया है कि एसआईआर प्रक्रिया पक्षपातपूर्ण थी और बिना उचित सत्यापन के मुस्लिम मतदाताओं, प्रवासी मजदूरों और निम्न वर्गों के नाम सूची से हटा दिए गए।
हालांकि चुनाव आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा कि एसआईआर प्रक्रिया सटीक और निष्पक्ष थी और मुसलमानों को अनुपातहीन रूप से हटाए जाने के आरोप सांप्रदायिक हैं।
मतदान केंद्रों की संख्या में वृद्धि
मतदान केंद्रों की संख्या में बड़ा बदलाव
हालिया आंकड़ों के अनुसार, बिहार में अब 90,712 मतदान केंद्र हैं, जो पहले से 12,817 अधिक हैं। प्रति केंद्र मतदाताओं की अधिकतम सीमा को घटाकर 1,200 किया गया है, जिससे बिहार यह बदलाव लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन. गोपालस्वामी का कहना है कि हटाए गए नामों की कुल संख्या देखने के बजाय मतदान केंद्रों की संख्या और उनकी पहुंच पर ध्यान देना चाहिए। आयोग के पास पर्याप्त व्यवस्था और समय था।