×

बिहार विधानसभा चुनाव: ड्राफ्ट मतदाता सूची में 7.24 करोड़ मतदाता, क्या है डिलीशन का सच?

बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों के लिए चुनाव आयोग ने ड्राफ्ट मतदाता सूची जारी की है, जिसमें 7.24 करोड़ मतदाता शामिल हैं। यह संख्या 2024 के लोकसभा चुनावों की तुलना में कम है। आयोग ने स्पष्ट किया है कि यह आंकड़ा अंतिम नहीं है और इसमें बदलाव संभव हैं। गोपालगंज में सबसे अधिक डिलीशन हुआ है, जबकि मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में स्थिति अलग है। क्या यह डिलीशन राजनीतिक कारणों से हुआ है? जानें इस रिपोर्ट में सभी महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में।
 

बिहार में ड्राफ्ट मतदाता सूची का अनावरण

बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी के तहत चुनाव आयोग ने राज्य की ड्राफ्ट मतदाता सूची जारी की है। यह सूची 'स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन' (SIR) के बाद शुक्रवार को प्रकाशित की गई, जिसमें कुल 7.24 करोड़ मतदाताओं का नाम शामिल किया गया है। यह संख्या 2024 के लोकसभा चुनाव में मौजूद मतदाताओं की तुलना में लगभग 49 लाख यानी 6.3% कम है।


अंतिम आंकड़ों में बदलाव की संभावना

हालांकि, चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि यह आंकड़ा अंतिम नहीं है और इसमें अभी भी नाम जोड़े या हटाए जा सकते हैं। अगस्त 1 को जारी एक स्टेटस रिपोर्ट में इस ड्राफ्ट सूची की तुलना 24 जून को जारी सूची से की गई थी, जिसमें 7.89 करोड़ मतदाता दर्ज थे। लेकिन वह आंकड़ा केवल जिला स्तर तक सीमित था, इसलिए इस रिपोर्ट में लोकसभा चुनाव 2024 के आंकड़ों को आधार बनाकर विधानसभा क्षेत्र स्तर पर विश्लेषण किया गया है।


विधानसभा क्षेत्रों में मतदाता संख्या में असमानता

बिहार के 243 विधानसभा क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या में बदलाव असमान है। गोपालगंज विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक 62,269 यानी 18% मतदाता हटा दिए गए हैं, जबकि पूर्वी चंपारण के ढाका क्षेत्र में सबसे कम 2,083 यानी 0.63% मतदाता हटाए गए हैं।


डिलीशन के कारणों की जांच

चुनाव आयोग के अनुसार, 22 लाख मतदाता मृत्यु के कारण, 36 लाख स्थायी रूप से स्थानांतरित या अनुपस्थित और 7 लाख मतदाता दोहरी एंट्री के कारण हटाए गए हैं। यह माना गया था कि जिन क्षेत्रों में प्रवासी मतदाता अधिक हैं, वहां मतदान दर 2024 में कम रहेगी और वहां से अधिक नाम हटाए गए होंगे। लेकिन 2024 के मतदान प्रतिशत और डिलीशन के बीच कोई सीधा संबंध नहीं पाया गया है।


राजनीतिक पक्षपात की आशंका

कुछ रिपोर्टों और राजनीतिक विश्लेषकों ने आशंका जताई थी कि यह डिलीशन विपक्षी दलों के मतदाताओं को निशाना बनाने के लिए की गई है। हालांकि, 2020 के विधानसभा चुनाव के आंकड़े इसे झूठा साबित करते हैं। एनडीए ने 243 में से 125 सीटें जीती थीं और इन क्षेत्रों में 6.4% डिलीशन हुआ, जबकि महागठबंधन द्वारा जीती गई 115 सीटों में 6.1% डिलीशन दर्ज की गई।


मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में डिलीशन

धारणा थी कि मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में ज्यादा डिलीशन हुआ है। 2011 की जनगणना के अनुसार किशनगंज, जो बिहार का सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाला जिला है, वहां सबसे अधिक वोटर डिलीशन हुआ। लेकिन कटिहार और अररिया जैसे अन्य मुस्लिम बहुल जिलों में डिलीशन की दर सबसे कम 10 जिलों में शामिल है।


कांटे की टक्कर वाली सीटों पर वोटर डिलीशन

यह तर्क किया गया था कि जिन सीटों पर 2020 में करीबी मुकाबला था, वहां वोटर लिस्ट में बदलाव का प्रभाव सबसे अधिक होगा। लेकिन आंकड़े इस थ्योरी का समर्थन नहीं करते। 2020 के विजयी मार्जिन और SIR के तहत हुए डिलीशन के बीच कोई ठोस संबंध नहीं मिला।


मतदान पर डिलीशन का प्रभाव

यह एक चौंकाने वाला लेकिन संभावित सच हो सकता है। 2024 में बिहार की कुल वोटिंग 56% रही थी, जो देश में सबसे कम है। SIR के ड्राफ्ट रोल में सभी सीटों पर वोटर की संख्या 2024 के वास्तविक मतदान से अधिक है। यदि हटाए गए वोटर वे ही हैं जो पहले से राज्य में नहीं थे या मृतक थे, तो 2025 में मतदान का प्रतिशत बढ़ने की संभावना है।