भारत की कल्याणकारी योजनाओं पर राजनीतिक लाभ का प्रभाव
भारत की राजनीति और कल्याणकारी योजनाएं
Editorial | आलोक मेहता | भारत की राजनीतिक और आर्थिक नीतियों पर विचार करने वाले प्रमुख विशेषज्ञों में भारतीय अमेरिकी रुचिर शर्मा का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। उनकी भूमिका मॉर्गन स्टैनली और अन्य संस्थाओं में उन्हें एक प्रभावशाली विश्लेषक बनाती है। हाल ही में बिहार चुनाव परिणामों पर उनकी प्रतिक्रिया ने कई लोगों को आश्चर्यचकित किया। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास आर्थिक विकास के लिए कोई नई दृष्टि नहीं है, और उनकी जीत एक सकारात्मक संकेत नहीं है।
शर्मा का मानना है कि कई लोकतांत्रिक देशों में जनता सरकारों को बदल रही है, लेकिन भारत में ऐसा नहीं हो रहा। उन्होंने इसे 'कल्याण-जाल' कहा, जहां विकास की प्रक्रियाएं धीमी हो जाती हैं और सरकार की प्राथमिकता केवल अनुदान और सब्सिडी पर केंद्रित हो जाती है।
शर्मा अकेले नहीं हैं; कई अन्य विश्लेषक भी भारत की कल्याणकारी योजनाओं को गलत मानते हैं। वे पश्चिमी देशों की आर्थिक नीतियों को अधिक महत्व देते हैं। शर्मा का कहना है कि बिहार ने 2005 से 2015 के बीच एक महत्वपूर्ण विकास देखा, लेकिन 2015 के बाद विकास की गति धीमी हो गई।
हालांकि, बिहार में कई विकासात्मक गतिविधियाँ हो रही हैं, जैसे कि सड़कें, स्कूल और मेडिकल कॉलेज। शर्मा की टिप्पणियों में यह बात छूट गई है कि बिहार के लोग अपनी मेहनत से भी विकास में योगदान दे रहे हैं।
शर्मा की यह बात सही है कि भारत में रोजगार एक बड़ी चुनौती है, लेकिन बिहार में युवा अब अपने उद्यमों से जुड़ रहे हैं। कौशल विकास की आवश्यकता है, लेकिन यह भी सच है कि कई युवा अब अपने व्यवसाय शुरू कर रहे हैं। (लेखक संपादकीय निदेशक हैं।)