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भारत की सड़कें: विकास की चमक और गड्ढों की सच्चाई

भारत की सड़कें गड्ढों से भरी हुई हैं, जो विकास के दावों के विपरीत एक गंभीर समस्या बन चुकी हैं। हाल की रिपोर्टों के अनुसार, सड़क दुर्घटनाओं में वृद्धि हो रही है, जिससे मानवीय और आर्थिक लागत बढ़ रही है। नितिन गडकरी के कार्यकाल में कुछ सुधार हुए, लेकिन गड्ढों की समस्या अब भी बनी हुई है। क्या सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से लेगी? जानें इस मुद्दे की गहराई और इसके पीछे के कारण।
 

सड़कें और विकास का विरोधाभास

यह एक ऐसी कहानी है जिसे केवल पहले पन्ने की खबर नहीं, बल्कि पूरे पन्ने की खबर बनना चाहिए। लेकिन ऐसा शायद ही कभी होता है। यह संपादकीय में तो जगह पाती है, लेकिन उन सुर्खियों में नहीं जो गर्व से बताती हैं कि भारत ने ब्रिटेन को पीछे छोड़ दिया है या हम जल्द ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य बनने वाले हैं। लेकिन क्या असली खबर शोर और प्रचार के बीच आ सकती है? यह असलियत हमें सामूहिक रूप से शर्मिंदा करती है, लेकिन यह टूटी-फूटी, उपेक्षित और अनसुनी है, जो गड्ढों से भरी सड़कों पर बिखरी हुई है!


गड्ढों से भरी सड़कें

मेरी कॉलोनी के बाहर की सड़क अब इतनी गड्ढों से भरी है कि आप उसमें नहीं, बल्कि उसमें उतरते हैं। गाड़ी हिचकोले खाती है, और आप मन ही मन टायरों की सलामती की दुआ करते हैं। सोचिए, इस रास्ते से गुजरने वाला कोई बच्चा साइकिल पर या एम्बुलेंस अस्पताल की ओर दौड़ती हुई, किस दहशत और चिंता से गुजरता होगा। यह स्थिति झुंझलाहट से भय में बदल जाती है। विडंबना यह है कि इसी सड़क पर ऑडी और बीएमडब्ल्यू जैसी महंगी गाड़ियाँ रेंगती हैं, जबकि नीचे गड्ढे और अंधेरा है।


विकास का सपना और वास्तविकता

यह भारत के विकास का एक सपना है, जिसमें भविष्य के पहिए आज के गड्ढों में धँसे हुए हैं। यह केवल एक स्थानीय समस्या नहीं है, बल्कि एक राष्ट्रीय आपदा है जिसे हर दिन सामान्य असुविधा कहकर टाल दिया जाता है। यह कड़वा सच है कि ऐसी कहानियाँ अब सुर्खियाँ नहीं बनतीं, क्योंकि ये प्रधानमंत्री और उनकी सरकार की छवि निर्माण की कहानियों को चमकदार नहीं बनातीं।


नितिन गडकरी का कार्यकाल

जब नितिन गडकरी ने सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय का कार्यभार संभाला, तब आशा बंधी थी। ऐसा लगा कि अब एक ऐसा व्यक्ति आया है जो तर्क और लॉजिस्टिक्स की भाषा समझता है। लेकिन क्या फायदा जब सड़कें ही गड्ढों में तब्दील हो गई हैं? बुलेट ट्रेन का क्या महत्व है, जब स्कूल वैनें गड्ढों में पलट जाती हैं?


सड़क दुर्घटनाओं का बढ़ता आंकड़ा

गड्ढेदार सड़कें अब केवल असुविधा नहीं, बल्कि एक मौन नरसंहार बन चुकी हैं। 2023 में, परिवहन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, 2,161 लोग गड्ढों के कारण मारे गए, जो पिछले साल से 16.4 प्रतिशत अधिक है। सड़क दुर्घटनाओं में हर तीन मिनट में एक मौत हो रही है।


आर्थिक और मानवीय लागत

विश्व बैंक का अनुमान है कि सड़क दुर्घटनाएँ भारत की जीडीपी का 3-5 प्रतिशत हर साल खा जाती हैं। यह एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थिति है, जिसे हम अनदेखा कर रहे हैं।


भ्रष्टाचार और उपेक्षा

गड्ढों के निर्माण के पीछे की वजहें सभी को ज्ञात हैं—मानसून, भारी ट्रैफिक, घटिया सामग्री। लेकिन जो इन्हें त्रासदी में बदलता है, वह है इंसानी कारक: घटिया निर्माण, टेंडर घोटाले।


जवाबदेही की कमी

हाल ही में एक रिपोर्ट में कहा गया कि सरकार को खराब सड़कों से हुए नुक़सान का ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है। लेकिन क्या ऐसी याचिकाएँ सचमुच सुनी जाती हैं? भारत में न्याय में देरी केवल न्याय से इंकार नहीं, बल्कि न्याय को दफ़न करना है।


भविष्य की चुनौतियाँ

जब भारत बुलेट ट्रेन का सपना देखता है, तब उसके लोग टूटी सड़कों पर मर रहे हैं। यह विरोधाभास वीभत्स है: 300 किलोमीटर प्रति घंटे की महत्वाकांक्षा, जबकि उपेक्षा से बने गड्ढों में एम्बुलेंसें फँसी पड़ी हैं।